Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 524
________________ परिशिष्ट २ तेजोलेश्या होते की चोंच के समान रक्त वर्ण के लेक्ष्या पुद्गलों से आत्मा में होने वाले वे परिणाम जिनसे नम्रता आती है, धर्मरुनि क होती है, दूसरे का हित करने की इच्छा होती है आदि । तेजस - कार्मगमंधन नामकर्म जिस फर्म के उदय से तेजस शरीर पुद्गलों का कार्मेण पुलों के साथ सम्बन्ध हो । संजस असगंध नामकर्म - जिस कर्म के उदय से पूर्व गृहीत तेजस शरीर पुद्गलों के साथ गृह्यमाण तेजस पुगलों का परस्पर सम्बन्ध होता है । संसर्गणा - जिन वर्गेणाओं से तेजस शरीर बनता है । तैजसशरीर---तंजल पुद्गलों से बने हुए बहार को पचाने वाले और तेजोलेश्या साधक शरीर को तेजस शरीर कहते हैं । तैजसशरीर मामकर्म जिस कर्म के उदय से जोव को तेजस शरीर की - प्राप्ति हो । तैजसपर प्रायोग्य उत्कृष्ट वर्गमा--तेजसवारीरप्रायोग्य जघन्य वर्गणा के अनंतवें माग अधिक प्रदेश वाले स्कंधों को उत्कृष्ट वर्गणा । ―― संसारी र प्रायोग्य जघन्य वगंणा- -आहारक शरीर की ग्रहणयोग्य उत्कृष्ट धर्मणा के अनन्तर की अग्रहण योग्य उत्कृष्ट वर्गेणा से एक प्रदेश अधिक स्कंधों की वर्गणा तेजसशरीर के योग्य अधन्य वर्गणा होती है । तंजस संचालन नामकर्म जिस फर्म के उदय से तेजस शरीर रूप परिणत पुद्गलों का परस्पर साक्षिष्य हो । - - BAL ३५ - तंजयात जीवों के अनुग्रह या विनाश करने में समर्थ तैजस पारीर की रचना के लिये किया जाने वाला समुद्घात । प्रकरय -- जो शरीर चल फिर सकता है और जो बस नामकर्म के उदय से प्राप्त होता है । अस मामकर्म -- जिस कर्म के उदय से जीव को साय की प्राप्ति होती है । त्रसरेणु – आठ उध्वरेणु का एक प्रसरेणु होता है । त्रिस्थानिक — कर्म प्रकृति के स्वाभाविक अनुभाग से तिगुना अनुभाग | श्रीमि जीव-जिन जीवों को श्रीन्द्रिय जाति नामकर्म के उदय से स्पर्शन, रसन और घाण यह तीन इन्द्रियाँ प्राप्त हैं, उन्हें श्रीन्द्रिय जीव कहते हैं । त्रुटितांग- चौरासी लाख पूर्व के समय को कहते हैं ।

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