Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 513
________________ पारिभाषिक शब्द कोष औवारिक कार्मणबन्धन नामकर्म -- जिस कर्म के उदम से औदारिक शरीर मुगलों का कामंण पुद्गलों के साथ हो । भारतजसका बंधन नामकर्म जिस कर्म के उदय से औौदारिकवारीर पुद्गलों का जिस कामंण पुगलों के साथ सम्बन्ध हो । औवारितं अस बंधन नामकर्म जिस कर्म के उदय से औदारिकशरीर पुगलों का तेजस वुगलों के साथ सम्बम्ध हो । भवारिक मिष काय - मोदारिकपारीर की उत्पत्ति प्रारम्भ होने के प्रथम समय से लगाकर अन्तर्मुहूर्स तक मध्यवर्ती काल में वर्तमान अपरिपूर्ण शरीर को कहते हैं । २४ — औदारिकमिश्र शामयोग — औदारिक और कार्मण इन दोनों शरीरों की सहायता से होने वाले वीर्य-शक्ति के व्यापार को अथवा औदारिक मिश्र काम द्वारा होने वाले प्रयत्नों को भवारिक मिश्र काययोग कहा जाता है। औवारिक शारीर---जिस शरीर को तीर्थंकर आदि महापुरुष धारण करते हैं, जिससे मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है, जो औदारिक वर्गाओं से निष्पक्ष मांस, हड्डी आदि भवयवों से बना होता है, स्थूल है आदि वह औवारिक • शरीर कहलाता है । starfreशरीर नामकर्म जिस कर्म के उदय से औदारिकशरीर प्राप्त हो । औवारिकशरीरभर नामकर्म — जिस कर्म के उदय से पूर्वग्रहीत औदारिक पुलों के साथ वर्तमान में ग्रहण किये जाने वाले औदारिक पुगलों का आपस में मेल होता है । श्रीवारिक वाजिम पुगल वर्गणाओं से औदारिक शरीर बनता है । श्रीवारिकसंचालन नामकर्म-जिस कर्म के उदय से औदारिक शरीर रूप परिस पुगलों का परस्पर सान्निध्य हो । पपातिक क्रिय शरीर — उपपाल जन्म लेने वाले देव और मारकों को जो शरीर जन्म समय से ही प्राप्त होता है । अपशमिक भाव - मोहनीयकर्म के उपपाम से होने वाला माय । - पशमिक धारित्र चारित्र मोहनीय की पच्चीस प्रकृतियों के उपशम से व्यक्त होने वाला स्थिरात्मक आत्म-परिणाम | औपशमिक सम्मवस्थ - अनन्तानुबंधी कषाय चतुष्क और वर्षांनमोत्रिक – कुल

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