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सप्ततिका प्रकरण
उदीरणा के द्वारा उसका अनुभव करते हुए जब एकः आवलि स्थिति शेष रह जाती है तब सम्यक्त्व का उदय ही होता है उदीरणा नहीं होती है । सज्वलन लोभ का उदय और उदीरणा एक साथ होती है। जब सूक्ष्मसंपराय का समय एक आवनि शेष रहता तब आवलि मात्र काल में लोभ का उदय ही होता है, उदीरणा नहीं होती है। ___ तीन वेदों में से जिस वेद से जीव श्रेणि पर चढ़ता है, उसके अन्तरकरण करने के बाद उस वेद की प्रथम स्थिति में एक आवलि प्रमाण काल के शेष रहने पर उदय ही होता है, उदीरणा नहीं होती है। चारों ही आयुओं का अपने-अपने भव की अन्तिम आवलि प्रमाण काल के शेष रहने पर उदय ही होता है, उदीरणा नहीं होती । लेकिन मनुष्यायु में इतनी विशेषता है कि इसका प्रमत्तसंयत गुणस्थान के बाद उदय ही होता है, उदीरणा नहीं होती है। ___ मनुष्यगति, पंचेन्द्रिय जाति, बस, बादर, पर्याप्त, सुभग, आदेय, यशकीति और तीर्थंकर ये नामकर्म की नौ प्रकृतियां हैं और उच्चगोत्र. इन दस प्रकृतियों का सयोगिकेबली गुणस्थान तक उदय और उदीरणा दोनों ही सम्भव हैं किन्तु अयोगिकेवली गुणस्थान में इनका उदय ही होता है, उदीरणा नहीं होती है।'
१ अन्यच्च मनुष्यायुषः प्रमत्तगुणस्थानकाद्यमुदीरणा न मयति किन्तुदयएव केवलः ।
- सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ. २४२-२४३ २ मणुयगइजाइतसबादरं च पज्जत्तसुभगमाइज्ज ।
जसकित्ती तित्यपरं नामस्स हवंति नव एया ॥ ३ ...."सयोगिकेलिगुणस्थानकं यावद पुगपद उदय-उदीरणे-अयोग्यवस्थायां तूदय एव नोदीरणा ।
-सप्ततिका प्रकरण टोका, पृ. २४३