Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 501
________________ पारिभाषिक शब्दकोष अमाहारक-ओज, सोम और कवल इनमें से किसी भी प्रकार के आहार को न करने वाले जीव अनाहारक होते हैं। अनिवृत्तिकरण- वह परिणाम जिसके प्राप्त होने पर जीप अवश्यमेव सम्यक्रव प्राप्त करता है । अमिवृत्तिबावरसंपराय गुगस्थान- वह है जिसमें बादर (स्थूल) संपराय (कषाय) उदय में हो तथा समसमय बता जी के परिणामों में समानता हो। समुत्कृष्ट ६ष-एक समय कम उत्कृष्ट स्थिति बंध से लेकर जघन्य स्थिति बंध तक के सभी बंध। अनुगामी अवधिशाम-जो अवधिज्ञान अपने उत्पत्ति क्षेत्र को छोड़कर दूसरे स्थान पर चले जाने पर भी विद्यमान रहता है। अनुभवयोग्या स्थिति-अबाधा काल रहिल स्थिति। अनुभाग पंप-कर्मरूप गृहीत पुद्गल परमाणुओं की फल देने की शक्ति व उसकी तीव्रता, मंटता का निश्चय करना अनुभाग बंध कहलाता है। अभ्योग श्रुत--सत् आदि अनुयोगमारों में से किसी एक के द्वारा जीवादि पदायों को जानना ।। अनुयोगसमास अत-एक से अधिक दो, तीन आदि अनुयोगदारों का ज्ञान | अन्तरकरण-एक आवली या अन्त महतं प्रमाण नीचे और ऊपर की स्थिति को __ छोड़कर मध्य में से अन्तमुहर्त प्रमाण दलिफों को उठाकर उनका बंधने वाली अन्य सजातीय प्रकृतियों में प्रक्षेप करने का नाम अन्तरकरण है। इस अन्तरकरण के लिये जो क्रिया की जाती है और उसमें जो काल लगता है उसे भी उपवार से अन्तरकरण कहते हैं। अन्तराय-ज्ञानाम्पास के माधनों में विघ्न डालना, विद्यार्थियों के लिये प्राप्त होने वाले अभ्यास के साधनों की प्राप्ति न होने देना आदि अन्तराम कहलाता है। अम्सराय कर्म-जो कर्म आस्मा की दान, लाम, मोग, उपभोग, भीर्य रूप शक्तियों का घात करता है । अथवा दानादि में अन्त राय रूप हो उसे अन्तराम कर्म कहते हैं । मास:कोडाकोड़ो कुछ कम एक कोडाकोड़ी। अपर्पवसित भूत-वह श्रुत जिसका अन्त न हो । अपर्याप्त- अपर्याप्त नामफर्म के उदय बाले जीव ।

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