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पारिभाषिक शब्द-कोष
भविभाग प्रतिच्छेद-वीर्य-वामित के अदिमागी अंश या माग। धीर्य परमाणु,
__भाव परमाणु इसके दूसरे नाम है । अबिरस-बोषों से विरत न होना । यह आत्मा का वह परिणाम है जो चारित्र
ग्रहण करने में विघ्न डालता है। शविरत सम्पष्टि गुणस्थान-सम्पम्हष्टि होकर भी जो जीव किसी प्रकार के
प्रत को धारण नहीं कर सकता वह अविरत सम्यग्दृष्टि है और उसके
स्वरूप विशेष को अविरत सम्यादृष्टि गुणस्थान कहते हैं । मधुभ नामकर्म-जिस कर्म के उदय से नाभि के नीचे के अवयव अशुभ हों। मनुभ विहायोगति नामकर्म--जिस कर्म के उदय से जीव की चास ऊँट आदि
___ की चाल की भांति अशुभ हो । अयोनिगत ससायन सम्वाद..-को पर: टि गीर उमाण श्रेणि
पर तो चढ़ा नहीं किंतु अनतानुबंधी के उदय से सासादन मात्र को प्राप्त
हो गया उसे अणिगत सासादन सम्यग्दृष्टि कहते हैं । असंगी-जिन्हें मनोलब्धि प्राप्त नहीं है अथवा जिन जीवों के अधिपूर्वक इष्ट
अमिष्ट में प्रवृत्ति-निवृत्ति नहीं होती है, वे असंशी हैं । असंही भुत-असंशी जीवों का अत ज्ञान । असंख्यातागु वर्गमा-असंभपात प्रदेशी स्कन्धों की वर्गणा। असत्य मनोयोग-जिस मनोयोग के द्वारा वस्तु स्वरूप का विपरीत चिन्तन हो
अथवा सत्य मनोयोग से विपरीत मनोयोग । असत्य वचनयोग--असत्य पचन वर्गणा के निमित्त से होने वाले योग अथवा
किसी वस्तु को अयथार्थ सिद्ध करने वाले वचनयोग को कहते हैं । असस्थामृषा मनोयोग-जो मन न तो सत्य हो और न मृषा हो उसे असत्या
मषा मन कहते हैं और उसके द्वारा होने वाला योग असत्याभूषा मनोयोग कहलाता है 1 अथवा जिस मनोयोग का चितम विधि-निषेध शून्य हो, जो चिंतन न तो किसी वस्तु की स्थापना करता हो ओर न निषेध,
उसे असत्यामृषा मनोयोग कहते हैं । असरयामृषा वचनयोग:-ओ बचनयोग न तो सत्य रूप हो और न मृषा रूप ही
हो । अथवा जो वचनयोग किसी वस्तु के स्थापन-उत्यापन के लिए
प्रवृत्त नहीं होता उसे असत्यामृषा बचनयोग कहते हैं। असाता बनीष कार्म--जिस फर्म के उदय से आत्मा को अनुकूल इन्द्रिय विषयों