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सप्ततिका प्रकरण
वर्शनमोहनीय की उपशमना ___दर्शनमोहनीय की तीन प्रकृतियों की उपशमना के विषय में यह नियम है कि मिथ्यात्व, राम्यग्मिध्यात्व और सम्यक्त्व यह दर्शन भाहनोच की तीन प्रकालय है। उनमें से मिथ्यात्व का उपशम तो मिथ्याष्टि और वेदक सम्यग्दृष्टि जीव करते हैं, किन्तु सम्यक्त्व
और सम्यगमिथ्यात्व इन दो प्रकृतियों का उपशम वेदक सम्यग्दृष्टि जीव ही करते हैं । इसमें भी चारों गति का मिथ्यादृष्टि जीव जान्न प्रथम सम्यक्त्व को उत्पन्न करता है तब मिथ्याल का उपशम करता है। मिथ्यात्व के उपशम करने की विधि पूर्व में बताई गई अनन्तानुबंधी चतुष्का के उपशम के समान जानना चाहिये किन्तु इतनी विशेषता है कि इसके अपूर्वकरण में गुणसंक्रम नहीं होता किन्तु स्थितिघात, रसघात, स्थितिबंध और गुणश्रेणि, ये प्यार कार्य होते हैं।
१ दिगम्बर कर्भग्रन्थों में इस विषय के निर्देश माच यह है कि मिथ्यादृष्टि
एक मिथ्यात्व का, मिथ्यात्व और सम्यमिथ्यात्व इन दोनों का या मिथ्यात्व, सम्पमिथ्यात्व और सम्यक्त्व, इन तीनों का तथा सम्मादृष्टि द्वितीयोपशम सम्यक्त्व की प्राप्ति के समय तीनों का उपशाम करता है। जो जीव सम्पवस्व से च्युत होकर मिथ्यात्व में जाकर वेदककाल का उल्लंघन कर आता है, यह मदि सम्यक्त्व की उदवलना होने के काल में ही उपशम सम्बकाव को प्राप्त होता है तो उसके तीनों का उपशम होता है | जो जीव सम्यक्त्व की उबलना के बाद सम्यगमिथ्यात्व की उदलना होते समय यदि उपशमसम्यक्त्व को प्राप्त करता है तो उसके मिथ्याब और सम्यगमिथ्यात्व इन दो का उपशम होता है और जो मोहनीय की सब्बीस प्रकृतियों की सत्ता वाला मिश्यादृष्टि होता है, उसके एक मिश्यात्व
का ही उपशम होता है। २ तत्र मिथ्यात्वस्योपशमना मिथ्यादृष् वेदकसम्यग्दृष्टेश्च । सम्यक्त्व सम्पग्मिथ्यात्वयोस्तु वेदकसम्याहाटेरेव ।
-सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० २४६