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सप्ततिका प्रकरण
अगंपूर्ण समुग्धायमणंता केवली जिणा ।
अरमरणविष्पमुक्का सिद्धि वरगई गया । समुद्घात की व्याख्या
मूल शरीर को न छोड़कर आत्म-प्रदेशों का शरीर से बाहर निकलना समुद्घात कहलाता है । इसके सात भेद हैं-वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात, मारणान्तिकसमुद्घात, तेजससमुद्घात, वक्रिय समुद्घात, आहारकसमुद्घात और केवलिसमुद्घात । इन सात भेदों के संक्षेप में लक्षण इस प्रकार हैं___ तीव्र वेदना के कारण जो समुद्घात होता है, उसको वेदना समुद्घात कहते हैं । क्रोध आदि के निमित्त से जो समुद्घात होता है उसे कषायसमुद्घात कहते हैं । मरण के पहले उस निमित्त से जो समुद्घात होता है उसे मारणान्तिक समुद्घात कहते हैं। जीवों के अनुग्रह या विनाश करने में समर्थ तैजस गरीर की रचना के लिये जो समुद्घात होता है उसे तैजससमुद्घात कहते हैं । वैक्रियशरीर के निमित्त से जो समुद्धात होता है उसे वैक्रियसमुद्घात कहते हैं, आहारकशरीर के निमित्त से जो समुद्घात होता है उसे आहारक समुद्घात कहते हैं तथा वेदनीय आदि तीन अघाति कर्मों की स्थिति आयकर्म की स्थिति के बराबर करने के लिये जिन (केवलज्ञानी) जो समुद्घात करते हैं, उसे केवलिसमुद्घात कहते हैं।
केवलिसमुद्घात का काल आठ समय है। पहले समय में रवशरीर का जितना आकार है तत्प्रमाण आत्म-प्रदेशों को ऊपर और नीचे लोक के अन्तपर्यन्त रचते हैं, उसे दण्डसमुद्घात कहते हैं। दूसरे समय में पूर्व और पश्चिम या दक्षिण और उत्तर दिशा में कपाटरूप से आत्म-प्रदेशों को फैलाते हैं। तीसरे समय में मथानसमुद्घात करते हैं अर्थात् मथानी के आकार में आठों दिशाओं में आत्म-प्रदेशों का फैलाव ।