Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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परिशिष्ट-१
दो छक्क ऽठ चउक्कं पण नव एक्कार छक्कग उदया। नेरइआइसु संता ति पंच एक्कारस चउक्कं ॥५१॥ इग विगलिदिय सगले पण पंच य अट्ठ बंपठाणाणि । पण छक्केक्कारुदया पण पण बारस य संताणि ॥५२।। इय कम्म पराइ ठाणाई सुठु बंधुदयसंतकम्माणं । गइआइएहिं असु चउप्पगारेण नेयाणि ॥५३।। उवयस्सुदीरणाए सामित्ताओ न बिज्जइ विसेसो। मोत्तूण य र सेवा सम्म ४i नाणंतरायदसगं दसणनक वेयणिज्ज मिच्छते। सम्मत्त लोभ बेयाऽऽउगाणि नव नाम उच्वं च ।।५।। तिस्थगराहारगबिरहियाओं अज्जेइ सन्वपगईओ। मिच्छत्तवेयगो सासणो वि इगुवीससेसाओ ॥५६॥ छायालसेस' मीसो अविरयसम्मो तियालपरिसेसा । तेवण्ण देस विरओ विरओ सगवण्णसेसाओ ।।५७॥ इगुसदिठमप्पमत्तो बंधइ देवाउयस्स इयरो वि। अट्ठावण्णमपुत्रो छप्पण्णं वा वि छब्बीसं ॥५८॥ बाबीसा एगणं बंधइ अठारसंतमनियट्टी। सत्तर सुहुमसरामो सायममोहो सजोगि ति ॥५६॥ एसो उ बंधसामित्तओघो गइयाइएसु वि तहेव । भोहाओ साहिजा जत्थ जहा पगडिसम्भाबो ॥६०।। तित्थगरदेवनिरयाउगं च तिसु तिसु गईसु बोद्धव्वं । अवसेसा पयडीओ हवंति सब्यासु वि गईसु ॥६१।। पतमकसायचउक्के दंसणतिग सत्तगा वि उवसंता।। अविरतसम्मत्ताओ जाय नियट्टि ति नायम्वा ।।६।। पडमकसायचउपकं एत्तो मिच्छत्तमीससम्मत्तं । अविरय से विरए पमत्ति अपमत्ति खोयंति ॥६३।।
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