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गाथार्थ – अनिवृत्तिवावर गुणस्थान बाला बाईस का और उसके बाद एक-एक प्रकृति कम करते हुए अठारह प्र तियों का बंध करता है। सूक्ष्मरूपराम बाला समह प्रकृतियों को बांधता हूँ उपशांशी कोणी उप केवली गुणस्थान वाले सिर्फ एक सातावेदमीय प्रकृति का बंध करते हैं।
षष्ठ कर्मग्रन्थ
विशेषार्थ - मौधें अनिवृत्तिमावर गुणस्थान के पहले भाग में बाईस प्रकृतियों का बंध होता है। इसका कारण यह है कि यद्यपि आठवें अपूर्वकरण गुणस्थान में २६ प्रकृतियों का बंध होता है, फिर भी उसके अंतिम समय में हास्य, रति, भरत और जुगुप्सा, इन चार प्रकृतियों का बंधविच्छेद हो जाने से नौवें गुणस्थान के पहले समय में २२ प्रकृतियों का बंध बतलाया है । इसके बाद पहले भाग के अंत में पुरुषमेव का दूसरे भाग के अंत में संज्वलन क्रोध का तीसरे भाग के अंत में संज्जलन मान का, चौथे भाग के अंत में संचलन माया का बिच्छेद हो जाने से पांचवें भाग में १८ प्रकृतियों का बंध होता है, अर्थात् मौ अनिवृत्तिबादर गुणस्थान के बंध की अपेक्षा पांच भाग हैं मतः प्रारंभ में तो २२ प्रकृतियों का बंध होता है और उसके बाद पहले, दूसरे, सोसरे, चौथे भाग के अंत में क्रमश: एक-एक प्रकृति का बंधविच्छेद होते जाने से २१, २०, १९ और १८ प्रकृतियों का मंच होता है। इसी आशय को स्पष्ट करने के लिये गाथा में संकेत किया है- बाबीसा एगुणं बंध अट्ठारसंतमनियट्टी ।'
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लेकिन जब अनिवृत्तिबावर गुणस्थान के पांचवें भाग के अंत में संज्वलन लोभ का बंधविच्छेद होता है तब दसवें सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान में १७ प्रकृतियों का बंध बतलाया है- 'सतर सुमसरागी' ।