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षष्ट कर्मग्रन्थ
सासादन गुणस्थान में-'सासणो वि इगुवीस सेसाओं' उन्नीस प्रकृतियों के बिना शेष १०१ प्रकृतियों का बंध होता है। अर्थात मिथ्यात्व गुण के निमित्त से जिन सोलह प्रकृतियों का बंध होता है, उनका सासादन गुणस्थान में मिथ्यात्व का अभाव होने से बंध नहीं होता है। मिथ्यात्व के निमित्त से बंधने वाली सोलह प्रकृतियों के नाम इस प्रकार हैं:
१ मिथ्यात्व, २ नपुंसकवेद, ३ नरकगति, ४ नरकानुपूर्वी, ५ नरकायु, ६ एकेन्द्रिय जाति,७द्वीन्द्रिय जाति, ८ श्रीन्द्रिय जाति, चतुरिन्द्रिय जाति, १० हुंडसंस्थान, ११ सेवात संहनन, १२ आतप, १३ स्थावर, १४ सूक्ष्म, १५ साधारण और १६ अपर्याप्त । मिथ्यात्व से बंधने वाली ११७ प्रकृतियों में से उक्त १६ प्रकृतियों को घटा देने पर सासादन गुणस्थान में १०१ प्रकृतियों का बंध होता है ।
इस प्रकार से पहले, दूसरे---मिथ्यात्व, सासादन-गुणस्थान में बंधयोग्य प्रकृत्तियों को बतलाने के बाद अब आगे की गाथा में तीसरे, चौथे आदि गुणस्थानों की बंधयोग्य : कृतियों की संख्या बतलाते हैं।
छायालसेस मोसो अविरयसम्मो तियालपरिसेसा । सेवण देसविरओ विरो सगवण्णसेसाओ ॥५७॥
शम्दा-छापालसेस-छियालीस के बिना, मोसो-मिश्र गुणस्थान में, मविरमसम्मो–अविरति सम्यग्दृष्टि में, तियासपरिक्षेस --- तेतालीस के बिना, सेवण्ण-अपन, वेसविरओ-देशविरत, विरो-प्रमत्तविरत, सगमण्णसे सामो- सप्तावन के सिवाय शेष ।
गापा-मिश्र गुणस्थान में छियालीस के बिना शेष प्रकृत्तियों का, अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में तेतालीस के बिना शेष प्रकृतियों का, देशविरत में तिरेपन के बिना और