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षष्ठ कर्मग्रन्थ
बंधस्थान
उदयस्थान
मंग २१६
प्रकृतिक
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सत्तास्थान ६२, ६५ ६२,८८ ६२, ८८ ६२, ८८ १२, ८८ १२, ८८
प्रकृतिक
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६३, ६२, ८६, ८८ ६३, ६२, ८६, ८८ ६३, ६२, ८६, ८ १३, ६२, ८६, ८८
६३,६२, ८६, ८८ | ६३, ६२, १६, ८
इस प्रकार से गतिमार्गणा में बंध, उदय और सत्ता स्थान तथा उनके संवेध का कथन करने के बाद अब आगे की गाथा में इन्द्रियमार्गणा में बंध आदि स्थानों का निर्देश करते हैं
इग विलिदिय सगले पण पंच य अट्ट अंधठाणाणि । पण छक्केक्कारक्या पण पण बारस य संताणि' ॥५२॥
१ तुलना कीजिये(क) इगि विगले पण बंधो अहवीसूणा उ अट्ठ इयरंमि । पंच छ एक्कारुदया पण पण बारस उ संताणि ॥
-पंचसंग्रह सप्ततिका गा० १३० (ख) एगे वियले सयले पण पण अज पंच छक्केगार पर्ण । पणतेरं बंधादी सेसादेसेवि इदि गेयं ।।
–गो० कर्मकांड गा० ७११ कर्भ ग्रंथ में पंचेन्द्रियों के १२ सत्तास्थान और गो० कर्मकांच में १३ सत्तास्थान बतलाये हैं।