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सप्ततिका प्रकरण . शब्दार्थ-बयस्स-उदय के, उदोरणाए-दीरणा के, सामिसाओ-स्वामित्व में, म विजा--नहीं है, विसेतो-विशेषता,
सूण-घोड़कर, 4-और, पाल-इकतालीस प्रकृतियों को, सेसार्व-बाकी की, सम्बपाई-सभी प्रकृतियों के ।
गाथार्ष--इकतालीस प्रकृतियों के सिवाय शेष सब प्रकृतियों के उदय और उदीरणा के स्वामित्व में कोई विशेषता नहीं है।
कोषा---ग में मामान, उदयन और सप्तास्थानों के साथ इन सबके संवेध का विचार किया गया। लेकिन उदय व उदीरणा में यथासम्भव समानता होने से उसका विचार नहीं किये जाने के कारण को स्पष्ट करने के लिये इस गाथा में बताया गया है कि उदय और उदीरणा में यद्यपि अन्तर नहीं है, लेकिन इतनी विशेषता है कि इकतालीस कर्म प्रकृतियों के उचय और उदीरणा में भिन्नता है। इसलिये उदययोग्य १२२ प्रकृतियों में से ४१ प्रकृतियों को छोड़कर शेष ८१ प्रकृतियों के उदय और उदीरणा में समानता जाननी चाहिये।
उदय और उदीरणा के लक्षण क्रमश: इस प्रकार हैं कि कालप्राप्त कर्म परमाणुओं के अनुभव करने को उदय कहते हैं और उदयावलि के बाहर स्थित कर्म परमाणुओं को कषाय सहित या कषाय रहित योग संज्ञा बाले वीर्य विशेष के द्वारा उदयावलि में लाकर उनका उदयप्राप्त कर्म परमाणुओं के साथ अनुभव करना उदीरणा कहलाता है । इस प्रकार कर्म परमाणुओं का अनुभवन
१ इह काल प्राप्तानां परमाणू नामनुमचनमुदयः, अकालप्राप्तानामुदयावलि
काबहि:स्थितानां कषायसहितेनासहितेन बा योगसंज्ञकेन धीमविशेषण समाकृष्योदयप्राप्त: कर्मपरमाणुभि: सहानुभवनमुदीरणा।।
-- सप्ततिका प्रकरण टीका पृ०, २४२