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षष्ठ कर्मग्रन्थ
३७७ उदय और उदीरणा में समान है। फिर भी दोनों में कालप्राप्त और अकालप्राप्त कर्म परमाणुओं के अनुभवन का अंतर है। अर्थात् उदय में कालप्राप्त कर्म परमाणु रहते हैं तथा उदीरणा में अकाल प्राप्त कर्म परमाणु रहते हैं। तो भी सामान्य नियम यह है कि जहाँ जिस कर्म का उदय रहता है वहां उसकी उदीरणा अवश्य होती है।'
लेकिन इसके सात अपवाद हैं। वे अपवाद इस प्रकार जानने चाहिये१. जिनका स्वोदय से सत्वनाश होता है उनका उदीरणा-विच्छेद
एक आवलिकाल पहले ही हो जाता है और उदय-विच्छेद एक
आवलिकाल बाद होता है। २. वेदनीय और मनुष्यायु की उदीरणा छठे प्रभत्तसंयत गुणस्थान
तक ही होती है। जबकि इनका उदय अयोगिकेवली गुणस्थान
तक होता है। ३. जिन प्रकृतियों का अयोगिकेवली गुणस्थान में उदय है.
उनकी उदीरणा सयोगिकेवली गुणस्थान तक ही होती है। ४. चारों आयुकमों का अपने-अपने भव की अंतिम आवलि में
उदय ही होता है, उदीरणा नहीं होती है। ५. निद्रादि पांच का शरीरपर्याप्ति के बाद इन्द्रियपर्याप्ति
पूर्ण होने तक उदय ही होता है, उदीरणा नहीं होती है। ६. अंतरकरण करने के बाद प्रथमस्थिति में एक आवली काल
शेष रहने पर मिथ्यात्व का, क्षायिक सम्यक्त्व को प्राप्त करने वाले के सम्यक्त्व का और उपशमश्रेणि में जो जिस वेद के उदय से उपशमश्रेणि पर चढ़ा है उसके उस वेद का उदय ही होता है, उदीरणा नहीं होती है।
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१ जत्य उदओ सत्य उदोरणा, जस्प उदीरणा तरप उदओ ।