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सप्ततिका प्रकरण तथा उद्योत सहित ३० प्रकृतिक बन्धस्थान तिर्यंचगतिप्रायोग्य है। इसके भंग ४६०८ होते हैं तथा तीर्थकर नाम सहित ३० प्रकृतिक बन्धस्थान मनुष्यगतिप्रायोग्य है । जिसके स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, यश कीति-अयशःकीर्ति के विकल्प से - भंग होते हैं। __ अब नरक आदि गतियों में अनुक्रम से उदयस्थानों का विचार करते हैं कि नरकगति में २१, २५, २७, २८ और २६ प्रकृतिक, ये पांच उदयस्थान हैं। तिर्य चगति में नौ उदयस्थान है—२१, २४, २५, २६, २७, २८, २९, ३० और ३१ प्रकृतिक, मनुष्यगति में ग्यारह उदयस्थान हैं –२०, २१, २५, २६, २७, २८, २९, ३०, ३१, 8 और ६ प्रकृतिक । देवगति में छह उदयम्थान है-२१, २५, २७, २८. २६ और ३० प्रकृतिक । इस प्रकार नरक आदि चारों गतियों में पांच, नौ, ग्यारह और छह उदयस्थान जानना चाहिये--- ‘पण नव एक्कार छक्कगं उदया' 1 __सत्तास्थानों को नरक आदि मतियों में बतलाते हैं कि-'संता ति रंच एक्कारस चउक' । अर्थात नरकगति में १२, ८६ और १८ प्रकृतिक, ये तीन सत्तास्थान हैं । तिर्यंचगति में पांच सत्तास्थान ६२, ८८, ८६, ८०, और ७८ प्रकृतिका हैं । मनुष्यगति में ग्यारह सत्तास्थान हैं.-६३, १२, ८६, ८८, ८६, ८०, ७६, ७६, ७५, ६ और ८ प्रकृतिक । देवमति में चार सत्तास्थान है --- ६३, ६२, ८१ और ८८ प्रकृतिक ।
इस प्रकार नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देवगति के बन्धस्थान, उदयस्थान और सत्तास्थानों को बतलाने के बाद अब उनके संवेध का विचार नरक, तिथंच, मनुष्य और देवगति के अनुक्रम से करते हैं।
मरक गति में संक्षेष-पंचेन्द्रिय तिर्यंचगति के योग्य २६ प्रकृतियों का बन्ध करने वाले नारकों के पूर्वोक्त २१, २५, २७, २८ और २६ प्रकृतिक, पाँच उदयस्थान होते हैं और इनमें से प्रत्येक उदयस्थान में ६२ और ८८ प्रकृतिक, ये दो सत्तास्थान होते हैं । तिर्यंचगतिप्रायोग्य प्रकृतियों का बन्ध करने वाले जीव के तीर्थकर प्रकृति का बन्ध नहीं