________________
३४८
सप्ततिका प्रकरण.
मार्गणाओं में बन्धादिस्थान
दो छक्कटु चउपकं पण नव एक्कार छक्कगं उदया। नेरहआइसु संता ति पंच एक्कारस चउपकं ॥५१॥ ___ शहार्ष-दो कद धउनक-दो, छह, आठ और चार, पण नव एक्कार छक्कगं-पांच, नो, ग्यारह और छ, उक्याउदयस्थान, मेराइसु-नरकं आदि गतियों में, संतासत्ता, ति पंच एक्कारस घम-तीन, पांच, ग्यारह और चार।
गाथाघ-नारकी आदि (नारक, तिर्यंच, मनुष्य और देव) के क्रम से दो, छह, आठ और चार बन्धस्थान, पाँच, नौ, ग्यारह और छह उदयस्थान तथा तीन, पांच, ग्यारह और चार सत्तास्थान होते हैं। विशेषार्थ-इस गाथा में किस गति में कितने बन्ध, उदय और सत्तास्थान होते हैं, इसका निर्देश किया गया। नरक, तिर्यच, मनुष्य
और देव ये चार मतियां हैं और इसी क्रम का अनुसरण करके गाथा में पहले बन्धस्थानों की संख्या बतलाई है-'दो छक्कऽठ्ठ चउनको'अर्थात् नरकगति में दो, तियंचगति में छ, मनुष्यगति में आठ और देवगति में चार बन्धस्थान हैं । उदयस्थानों का निर्देश करते हुए कहा है.---'पण नव एक्कार छक्कगं उदया' | यानी पूर्वोक्त अनुक्रम से पांच, नो. ग्यारह और छह उदयस्थान हैं तथा-'ति पंच एक्कारस चउक्क'
१ तुलना कीजिये :--
दोपक्कचउपक गिरयादिमु गामबंघठाणाणि । पणणयएगारपणयं तिपंचवारसचउर्फ भ॥
-गो० कर्मकार, मा० ७१० कर्मग्रन्य में मनुष्यगति में ग्यारह सत्तास्थान हैं और गो० कर्मकांड में १२ सत्तास्थान तथा देवगति में फर्मग्रन्थ में ६ और गो० कर्मकांस में ५ उदयस्थान बतलाये हैं । इतना दोनों में अंतर हैं।