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षष्ठ कर्मग्रन्थ
३५७ तीर्थकर प्रकृति के साथ देवगतिप्रायोग्य २६ प्रकृतियों का बंध करने वाले के २८ प्रकृतिक बंधस्थान के समान सात उदयस्थान होते हैं, किन्तु इतनी विशेषता है कि ३० प्रकृतिक उदयस्थान सम्यग्दृष्टियों के ही कहना चाहिये, क्योंकि २६ प्रकृतिक बंधस्थान तीर्थंकर प्रकृति सहित है और तीर्थंकर प्रकृति का बंध सम्यग्दृष्टि के ही होता है । इन सब उदयस्थानों में से प्रत्येक में ६३ और ८९ प्रकृतिक, ये दो-दो सत्तास्थान होते हैं। इसमें आहारकसंयत के ६३ प्रवृत्तियों की ही सत्ता होती है। इस प्रकार तीर्थंकर प्रकृति सहित २६ प्रकृतिक बंधस्थान में चौदह सत्तास्थान होते हैं।
आहारकद्विक सहित ३० प्रकृतियों का बंध होने पर २६ और ३० प्रकृतिक दो उदयस्थान होते हैं। इसमें से जो आहारकसंयत स्वयोग्य सर्व पर्याप्ति पूर्ण करने के बाद अंतिम काल में अप्रमत्तसंयत होता है. उसकी अपेक्षा २६ का उदय लेना चाहिये । क्योंकि अन्यत्र २६ के उदय में आहारकदिक के बंध का कारणभूत विशिष्ट संयम नहीं पाया जाता है। इससे अन्यत्र ३० का उदय होता है । सो इनमें से प्रत्येक उदयस्थान में १२ की सत्ता होती है।
३१ प्रकृतिक बंधस्थान के समय ३० का उदय और ६३ की सत्ता होती है तथा १ प्रकृतिक बंधस्थान के समय ३० का उदय और ६३, ६२, ६६, ८८, ८०, ७६, ७६ और ७५ प्रकृतिक, ये आठ सत्तास्थान होते हैं।
इस प्रकार २३, २५ और २६ के बंध के समय चौबीस-चौबीस सत्तास्थान, २८ के बंध के समय सोलह सतास्थान, मनुष्यगति और लियंचगति प्रायोग्य २६ और ३० के बंध में चौबीस-चौबीस सत्तास्थान, देवगतिप्रायोग्य तीर्थकर प्रकृति के साथ २६ के बंध में चौदह सत्तास्थान, ३१ के बंध में एक सत्तास्थान और १ प्रकृतिक बंध में आठ सत्तास्थान होते हैं । इस तरह मनुष्य गति में कुल १५६ सत्तास्थान होते हैं ।