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স্বচ্ছ ক্ষমা
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(११-१२) उपशांतमोह भीगमोह गुमास्थान ___ उपशान्तमोह आदि गुणस्थानों में बंधस्थान नहीं है, किन्तु उदयस्थान और सत्तास्थान ही हैं। अतएव उपशान्तमोह गुणस्थान में--'एग चऊ' अर्थात् एक ३० प्रकृतिक उदयस्थान है और १३, ६२, ८६ और ८८ प्रकृतिक, ये चार सत्तास्थान हैं।
क्षीणमोह गुणस्थान में भी एक ३० प्रकृतिक उदयस्थान और ८०,७९, ७६ और ७५ प्रकृतिक, ये चार सत्तास्थान होते हैं-'एग चऊ'। यहाँ उदयस्थान में इतनी विशेषता है कि यदि सामान्य जीव क्षपकश्रेणि. पर आरोहण करता है तो उसके मतान्तर से जो ७२ भंग बतलाये हैं वे प्राप्त न होकर २४ ही प्राप्त होते हैं ! क्योंकि उसके एक वनऋषभनाराच संहनन का ही उदय होता है।' यही बात क्षपकणि के पिछले अन्य गुणस्थानों में भी जानना चाहिये तथा यदि तीर्थक र प्रकृति की सत्ता वाला होता है तो उसके प्रशस्त प्रकृतियों का ही सर्वत्र उदय रहता है, इसीलिये एक भंग बतलाया है।
इसी प्रकार सत्तास्थानों में भी कुछ विशेषता है। यदि तीर्थकर प्रकृति की सत्ता बाला जीव होता है तो उसके ८० और ७६ की सत्ता रहती है और दूसरा (तीर्थकर प्रकृति की सत्ता रहित) होता है तो उसके ७६ और ७५ प्रकृतियों को सता रहती है। यही बात यथासम्भव सर्वत्र जानना चाहिये ।
१ ......"अन्न भंगाश्चतुर्विशतिरेव वर्षभनाराचसहननयुक्तस्यैव क्षपक. श्रेण्यारम्मसम्भवात् ।
सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० २३४ २ एकोनाशीति-पंचसप्तती अतीर्थकर सत्कर्मणो वेवितव्ये । अशीति-षट्सप्सती तु तीर्थकरसत्कर्मणः।
सप्ललिका प्रकरण टीका, पृ. २३४