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षष्ठ कर्मग्रन्थ
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आती है । इसीलिये एक प्रकृतिक बंधस्थान में चारों सत्तास्थान प्राप्त
होते हैं।'
अपूर्वकरण गुणस्थान में बंध, उदय और सत्तास्थानों के संवेध का विवरण इस प्रकार है-
बंधस्थान
२८ प्रकृतिक
२६ प्रकृतिक
३० प्रकृतिक
३१ प्रकृतिक
१ प्रकृतिक
५
मंग उदयस्थान
१
१
१
ܕ
१
५.
ર્
३०
३०
३०
३०
५
मंग
२४ या ७२
२४ या ७२
२४ या ७२
२४ या ७२
२४ या ७२
१२० या ३६०
सत्तास्थान
EG
८६
દર્
६. ३
55, 58, ER, €3
म
(१-१०) अनिवृत्तिवावर, सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान
नौवें और दसवें अनिवृत्तिवादर और सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान में
१ इहाष्टाविंशति एकोनत्रिंशत् त्रिशद्-एकत्रिंशदबंधकाः प्रत्येकं देवगति प्रायोग्यबंध व्यवच्छेदे सत्येक विधबन्धका भवन्ति, अष्टाविंशत्या दिवसकानां च यथाक्रममष्टाशीत्यादीनि सत्तास्थानानि तत एकविधबन्धे चत्वापि प्राप्यन्ते ।
--सप्ततिका प्रकरण टोका, १० २३३