Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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सप्ततिका प्रकरण
शम्बार्थ-छण्णव छवकं-छह, नौ और छह, सिंग सत्त सुगंसोन, सात और दो, दुग तिग धुगं-दो, तीन और दो, तिगढ़ सकतीन, आठ और चार, दुग छ उच-दो, छह और चार, दुग पण
-दो, पांव और चार, NPA पर.-नार, को और चार, पणग एग च-पांच, एक और चार ।
एगेगम-एक, एक और आठ, एगेगमट्ट-एक, एक और आठ, उमस्य-छमस्थ (उपशान्तमोह, क्षीणमोह) केवलिजिमाणकेवलि बिन (सयोगि और अयोगि केवली) को अनुकम से, एग घऊ.. एक और चार, एग पक--एक और चार, अट्ट चउ-आठ और चार,
छक्क-दो और छह, उदयंसा--उदय और सत्ता स्थान ।
गाथा-छह, नौ, छह; तीन, सात और दो; दो, तीन और दो; तीन, आठ और चार; दो, छह और चार; दो, पांच और चारचार, दो और चार: पांच, एक और चार; तथा
एक, एक और आठ; एक, एक और आठ; इस प्रकार अनुक्रम से बंध, उदय और सत्तास्थान आदि के दस गुणस्थानों में होते हैं तथा छद्मस्थ जिन (११ और १२ गुणस्थान) में तथा केवली जिन (१३, १४, गुणस्थान) में अनुक्रम से एक, चार और एक, चार तथा आठ और चार; दो और छह उदय व सत्तास्थान होते हैं। जिनका विवरण इस प्रकार है
(ोष पृ० ३०७ का)
कर्मग्रन्थ से गो० कर्मकांड में इन गुणस्थानों के भंग भिन्न बतलावे हैं। सासादन में ३-७-६, देशबिरत में २-२-४ अप्रमत्तविरत में ४-१-४ सयोगि फेबली में २-४ ।
कर्मग्रन्थ में उक्त गुणस्थानों के मंग इस प्रकार हैं-सासादन में ३-७२, देशविरत में २-६-४, अप्रमत्तविरत में ४-२-४, सयोगिकेवली में -४ ।