Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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सप्ततिका प्रकरण
सम्यग्दृष्टि होकर तीर्थकर प्रकृति का बंध करता है और अंत समय में मिथ्यात्व को प्राप्त होकर नरक में जाता है उसी मिथ्यात्वी के अन्तर्मुहर्त काल तक मिथ्यात्व में ८९ प्रकृतियों की सत्ता होती है। ८८ प्रकृतियों की सत्ता चारों गतियों के मिथ्याष्टि जीवों के संभव है गोंकि बात मिसष्टि नीदों के प्रकृतियों की सत्ता होने में कोई बाधा नहीं है। ८६ और ८० प्रकृतियों की सत्ता उन एकेन्द्रिय जीवों के होती है जिन्होंने यथायोग्य देवगति मा नरकगति के योग्य प्रकृतियों की उद्वलना की है तथा ये जीव जब एकेन्द्रिय पर्याय से निकलकर विकलेन्द्रिय, तिर्यंच पंचेन्द्रिय और मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं तब इनके भी सब पर्याप्तियों के पर्याप्त होने के अनन्तर अंतर्महुर्त वाल तक ८६ और २० प्रकृतियों की सत्ता पाई जाती है । किन्तु इसके आगे वैक्रिय शरीर आदि का बंध होने के कारण इन स्थानों की सत्ता नहीं रहती है। ७८ प्रकृतियों की सत्ता उन अग्निकायिक और वायुकायिक जीवों के होती है जिन्होंने मनुष्यगति और मनुष्यानुपूर्वी की उबलना करदी है तथा जब ये जीव मरकर विकलेन्द्रिय और तियंच पंचेन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होते हैं तब इनके भी अन्तर्मुहूर्त काल तक ७८ प्रकृतियों की सत्ता पाई जाती है । इस प्रकार मिथ्यात्व गुणस्थान में १२, ८६, ८८, ८६, ८० और ७८ प्रकृतिक, ये छह सत्तास्थान जानना चाहिये।
अब सामान्य से मिथ्या दृष्टि गुणस्थान में बंध, उदय और सत्ता स्थानों का कथन करने के बाद उनके संवेघ का विचार करते हैं।
२३ प्रकृत्तियों का बंध करने वाले मिथ्याष्टि जीव के पूर्वोक्त नौ उदयस्थान संभव हैं। किन्तु २१, २५, २७, २८, २९ और ३० प्रकृतिक, इन ६ उदयस्थानों में देव और नारका संबंधी जो भंग हैं, वे यहाँ नहीं पाये जाते हैं । क्योंकि २३ प्रकृतिक बधस्थान में अपर्याप्त एकेन्द्रियों के योग्य प्रकृतियों का बंध होता है परन्तु देव अपर्याप्त एकेन्द्रियों के