Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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सप्ततिका प्रकरण तिर्यंच पंचेन्द्रिय और मनुष्यों. दोनों के होता है और प्रकृतिक उदयस्थान तिथंच पंचेन्द्रिय जीवों के ही होता है। इसके ६२, ८६, ८८ और ८६ प्रकृतिक, ये चार सत्तास्थान होते हैं। इनमें से ३० प्रकृतिक उदयस्थान में चारों सत्तास्थान होते हैं। उसमें भी ६ प्रकृतिक सत्तास्थान उसी के जानना चाहिये जिसके तीर्थकर प्रकृति को सत्ता है और जो मिथ्यात्व में आकर नरकगति के योग्य २८ प्रकृतियों का बंध करता है । शेष तीन सत्तास्थान प्रायः सब तिर्यंच और मनुष्यों के संभव हैं । ३१ प्रकृतिक उदयस्थान में ८६ प्रकृतिक को छोड़कर शेष तीन सत्तास्थान पाये जाते हैं। ८६ प्रकृतिक सत्तास्थान तीर्थंकर प्रकृति सहित होता है, परन्तु तिर्यंचों में तीर्थंकर प्रकृति की सत्ता संभव नहीं, इसीलिये ३१ प्रकृतिक उदयस्थान में ८६ प्रकृतिक सत्तास्थान का निषेध किया है। इस प्रकार २८ प्रकृतिक बंधस्थान में ३० और ३१ प्रकृतिक, दो उदयस्थानों की अपेक्षा ७ सत्तास्थान होते हैं।
देवगतिप्रायोग्य २९ प्रकृतिक बंधस्थान को छोड़कर शेष विकलेन्द्रिय, तिथंच पंचेन्द्रिय और मनुष्य गति के योग्य २६ प्रकृतियों का बंध करने वाले मिथ्यादृष्टि जीब के सामान्य से पूर्वोक्त १ उदयस्थान और ६२, ८६, ८८, ८६, ८० और ७८ प्रकृतिक, वे छह सत्तास्थान होते हैं । इनमें से २१ प्रकृतिक उदयस्थान में सभी सत्तास्थान प्राप्त हैं । उसमें भी ८६ प्रकृतिक सत्तास्थान उसी जीव के होता है जिसने नरकायु का बंध करने के पश्चात् वेदकः सम्यक्त्व को प्राप्त करके तीर्थकर प्रकृति का बंध कर लिया है। अनन्तर जो मिथ्यात्व में जाकर और मरकर नारकों में उत्पन्न हुआ है तथा ६२ और ८८ प्रकृतिक सत्तास्थान देव, नारक, मनुष्य, विकलेन्द्रिय, तिर्यंच पंचेन्द्रिय और एकेन्द्रियों की अपेक्षा जानना चाहिये। ८६ और ८० प्रकृतिक सत्तास्थान विकलेन्द्रिय, तिर्यंच पंचेन्द्रिय, मनुष्य और एकेन्द्रियों की