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सप्ततिका प्रकरण
(५) देशविरत गुणस्थान
___ अब पांचवें देशविरत गुणस्थान के बंध आदि स्थानों का विचार करते हैं । देशविरत गुणस्थान में बंध आदि स्थान क्रमश: 'दुग छ चउ' दो, छह और चार हैं । अर्थात् दो बंधस्थान, छह उदयस्थान और चार सत्तास्थान हैं। उनमें से दो बंधस्थान क्रमशः २८ और २९ प्रकृतिक हैं। जिनमें से २८ प्रकृतिक बंधस्थान तिर्यंच पंचेन्दिय और मनुष्यों के होता है। इतना विशेष है कि इस गुणस्थान में देवगतिप्रायोग्य प्रकृतियों का ही बंध होता है और इस स्थान के ८ भंग होते हैं। उक्त २८ प्रकृतियों में तीर्थक र प्रकृति को मिला देने पर २६ प्रकृतिक बंधस्थान होता है। यह स्थान मनुष्यों को होता है क्योंकि तिर्यचों के तीर्थकर प्रकृति का बंध नहीं होता है। इस स्थान के भी आठ भंग होते हैं।
इस गुणस्थान में २५, २७, २८, २९, ३० और ३१ प्रकृतिक, यह यह उदयस्थान होते हैं। इनमें से आदि के चार उदयस्थान विक्रिया करने वाले तिर्यंच और मनुष्यों के होते हैं तथा इन चारों उदयस्थानों में मनुष्यों के एक-एक भंग होता है किन्तु तिर्यंचों के प्रारम्भ के दो उदयस्थानों का एक-एक भंग होता है और अन्तिम दो उदयस्थानों के दो-द भंग होते हैं।
___३० प्रकृतिक उदयस्थान स्वभावस्थ तिर्यंच और मनुष्यों के तथा विक्रिया करने वाले तिर्यंचों के होता है। तो यहाँ प्रारम्भ के दो में से प्रत्येक के १४४-१४४ भंग होते हैं, जो छह संहनन, छह संस्थान, सुस्वरदुस्वर और प्रशस्त-अप्रशस्त विहायोगति के विकल्प से प्राप्त होते हैं तथा अंतिम का एक भंग होता है । इस प्रकार ३० प्रकृतिक उदयस्थान के कुल २८६ भंग होते हैं । दुभंग, अनादेय और अयशःकीर्ति का