Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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ਪਾਰਵਿਸ ਸਾ
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३० प्रकृतिक बंधस्थान के भी यद्यपि अनेक भेद हैं किन्तु सासादन में बँधने योग्य एक उद्योत सहित तिर्यंचगतिप्रायोग्य ही है। जिसे सासादन एकेन्द्रिय विकलेन्द्रिय तिर्यंच पंचेन्द्रिय मनुष्य देव और नारक जीव बाँधते हैं। इसके कुल ३२०० भंग होते हैं। इस प्रकार सासादन गुणस्थान में तीन बंधस्थान और उनके ८+६४०० + ३२०० - ६०८ भंग होते हैं। भाष्य गाथा में भी इसी प्रकार कहा गया है ।
अ य सय पोष बत्तीस सया य सासणे मेया ।
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सम्बाणऽवहिन
छण्ण उई ॥ अर्थात् सासादन में २८ आदि बंधस्थानों के क्रम से प ६४०० और ३२०० भेद होते हैं और ये सब मिलकर ६६०८ होते हैं ।
इस प्रकार से सासादन गुणस्थान में तीन बंधस्थान बतलाये | अब उदयस्थानों का निर्देश करते हैं कि २१, २४, २५, २६, २९, ३० और ३१ प्रकृतिक, ये सात उदयस्थान होते हैं ।
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इनमें से २१ प्रकृतिक उदयस्थान एकेन्द्रिय विकलेन्द्रिय नियंत्र पंचेन्द्रिय मनुष्य और देवों के होता है। नारकों में सासादन सम्यक्दृष्टि जीव उत्पन्न नहीं होते हैं जिससे सासादन में नारकों के २१ प्रकृतिक उदयस्थान नहीं कहा है। एकेन्द्रियों के २१ प्रकृतिक उदयस्थान के रहते हुए बादर और पर्याप्त के साथ यशःकीर्ति के विकल्प से दो भंग संभव हैं, क्योंकि सूक्ष्म और अपर्याप्तों में सासादन जीन उत्पन्न नहीं होता है, जिससे विकलेन्द्रिय तिर्यच पंचेन्द्रिय और मनुष्यों के प्रत्येक और अपर्याप्त के साथ जो एक-एक भंग होता है वह यहाँ संभव नहीं है । शेष भंग संभव हैं जो विकलेन्द्रियों के दो-दो, इस प्रकार से छह हुए तथा तिर्यंच पंचेन्द्रियों के मनुष्यों के और देवों के होते हैं। इस प्रकार २१ प्रकृतिक उदयस्थान के कुल ३२ भंग (२+६+६+६+८३२) हुए।
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