Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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षष्ठ कर्मग्रन्थ
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२४ प्रकृतिक उदयस्थान उन्हीं जीवों के होता है जो एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं। यहाँ इसके बार और पर्याप्त केकीति और अयशः कीर्ति के विकल्प से दो ही भंग होते हैं, शेष भंग नहीं होते हैं, क्योंकि सूक्ष्म, साधारण, अग्निकायिक और वायुकायिक जीवों में सासादन सम्यग्दृष्टि जीव उत्पन्न नहीं होता है ।
सासादन गुणस्थान में २५ प्रकृतिक उदयस्थान उसी को प्राप्त होता है जो देवों में उत्पन्न होता है। इसके स्थिर अस्थिर, शुभ -अशुभ और यशः कीर्ति अयशःकीर्ति के विकल्प से भंग होते हैं।
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२६ प्रकृतिक उदयस्थान उन्हीं के होता है जो विकलेन्द्रिय तिर्यंच पंचेन्द्रिय और मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं। अपर्याप्त जीवों में सासादन सम्यग्दृष्टि जीव उत्पन्न नहीं होते हैं। अतः इस स्थान में अपर्याप्त के साथ जो एक भंग पाया जाता है, वह यहाँ संभव नहीं किन्तु शेष भंग संभव हैं। विकलेन्द्रियों के दो-दो, इस प्रकार छह, तिथंच पंचेन्द्रियों के २८८ और मनुष्यों के २८८ होते हैं। इस प्रकार २६ प्रकृतिक उदयस्थान कुल मिलाकर ५८२ भंग होते हैं ।
में
सासादन गुणस्थान में २७ और २८ प्रकृतिक उदयस्थान न होने का कारण यह है कि वे नवीन भव ग्रहण के एक अन्तर्मुहूर्त के काल के जाने पर होते हैं किन्तु सासादन भाव उत्पत्ति के बाद अधिक से अधिक कुछ कम ६ आवली काल तक ही प्राप्त होता है । इसीलिये उक्त २७ और २८ प्रकृतिक उदयस्थान सासादन सम्यग्दृष्टि को नहीं माने जाते हैं ।
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२६ प्रकृतिक उदयस्थान प्रथम सम्यक्त्व से च्युत होने वाले पर्याप्त स्वस्थान गत देवों और नारकों को होता है। २६ प्रकृतिक उदयस्थान में देवों के और नारकों के १ इस प्रकार इसके यहाँ कुल भंग होते हैं ।