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सप्ततिका प्रकरण
२३. २५, २६, २६, २६ और ३० प्रकृतिक, ये छह अंधस्थान हैं। इनमें से २३ प्रकृतिकः बंधस्थान अपर्याप्त एकेन्द्रिय के योग्य प्रकृतियों का बंध करने वाले जीव को होता है। इसके बादर और सूक्ष्म तथा प्रत्येक और साधारण के विकल्प से चार भंग होते हैं। २५ प्रकृतिक बंधस्थान पर्याप्त एकन्द्रिय तथा अपयांप्त हन्द्रिय, श्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, तिर्यंच पंचेन्द्रिय और मनुस्य गति के योग्य प्रकृतियों का बंध करने बाले जीवों के होता है। इनमें से पर्याप्त एकन्द्रिय के योग्य बंध होते
भय २० भंग होते हैं तथा शेष अपर्याप्त द्वीन्द्रिय आदि की अपेक्षा एक-एक अंग होता है। इस प्रकार २५ प्रकृतिक बंधस्थान के कुल भंग २५ हुए।
२६ प्रकृतिक बंधस्थान पर्याप्त एकेन्द्रिय के योग्य बंध करने वाले जीव के होता है। इसके १६ भंग होते हैं तथा २८ प्रकृतिक बंधस्थान देवगति या नरकगति के योग्य प्रकृतियों का बंध करने वाले जीव के होता है। इनमें से देवमति के योग्य २८ प्रकृतियों का बंध होते समय तो भंग होते हैं और नरक गति के योग्य प्रकृतियों का बंध होते समय १ भंग होता है । इस प्रकार २८ प्रक्रतिक बंधस्थान के ह भंग हैं।
२६ प्रकृतिक बंधस्थान पर्याप्त द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय तिर्यंच पंचेन्द्रिय और मनुष्य गति के योग्य प्रकृतियों का बंध करने वाले जीवों के होता है। इनमें से पर्याप्त द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और जतुरिन्द्रिय के योग्य २६ प्रकृतियों का बंध होते समय प्रत्येक के आठ आठ भंग होते हैं । तिर्यंच पंचेन्द्रिय के योग्य २६ प्रकृतियों का बंध होते समय ४६०८ भंग तथा मनुष्य गति के योग्य २६ प्रकृतियों का बंध होते समय भी ४६०५ भंग होते हैं। इस प्रकार २६ प्रकृतिक बंधस्थान के कुल ४० मंगा होते हैं।
तीर्थकर प्रकृति के साथ देवगति के योग्य २६ प्रकृतिक बंधस्थान मिथ्या दृष्टि के नहीं होता है, क्योंकि तीर्थकर प्रकृति का बंध सम्यक्त्व