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सप्ततिका प्रकरण
यद्यपि गाथा ११ में मोहनीयकर्म के उदयस्थानों की सामान्य विवेचना के प्रसंग में विशेष स्पष्टीकरण किया जा चुका है, फिर भी गुणस्थानों की अपेक्षा उनका कथन करने के लिए गाथानुसार यहाँ विवेचन करते हैं।
'सनाद दमन मिन्टे' अर्थात् पहले मिश्याइष्टि गुणस्थान में ७, ८, ६ और १० प्रकृतिक, ये चार उदयस्थान होते हैं। मिथ्यात्व, अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण, संज्वलन, क्रोधादि में से अन्यतम तीन क्रोधादि, तीन वेदों में से कोई एक वेद, हास्य-रति युगल, शोकअरति युगल में से कोई एक युगल, इन सात प्रकृतियों का ध्रुव रूप से उदय होने से सात प्रकृतिक उदयस्थान होता है । इन ध्रुवोदया सात प्रकृतियों में भय अथवा जुगुप्सा अथवा अनन्तानुबंधी कषाय चतुष्क में से किसी एक कषाय को मिलाने पर आठ प्रकृतिक तथा उन सात प्रकृतियों में भय, जुगुप्सा अथवा भय, अनन्तानुबंधी अथवा जुगुप्सा, अनन्तानुबंधी में से किन्हीं दो को मिलाने से नौ प्रकृतिक और उक्त सात प्रकृतियों में भय, जुगुप्सा और अनन्तानुबन्धी अन्यतम एक कषाय को एक साथ मिलाने पर दस प्रकृतिक उदयस्थान होता है। इन चार उदयस्थानों में सात की एक, आठ की तीन, नौ की तीन और दस की एक, इस प्रकार भंगों की आठ चौबीसी प्राप्त होती हैं।
सासादन और मिश्र गुणस्थान में सात, आठ और नौ प्रकृतिक, ये तीन-तीन उदयस्थान होते हैं।
सासादन गुणस्थान में अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण, संज्वलन क्रोधादि में से अन्यतम क्रोधादि कोई चार, तीन देदों में कोई एक वेद, दो युगलों में से कोई एक युगल इन सात प्रकृतियों का ध्रुवोदय होने से सात प्रकृतिक उदयस्थान होता है। इस स्थान में भय या जुगुप्सा में से किसी एक को मिलाने पर आठ प्रकृतिक तथा भय और जुगुप्सा को एक साथ मिलाने पर नौ प्रकृतिक उदयस्थान