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सप्ततिका प्रकरण
के भङ्ग कम कर देना चाहिये । इसका तात्पर्य यह हुआ कि १३ योगों की अपेक्षा १२ से ३२ को गुणित करके २४ से गुणित करें और वैक्रियमिश्र की अपेक्षा ३२ को १६ से गुणित करें। इस प्रकार १२४३२ = ३५४४२४-- ६२१६ तथा नैकियमिश्र के ३२४ १६-- ५१२ हुए और इन ६२१६ और ५१२ का कुल जोड़ १७२८ होता है । यही १७२८ पदवृन्द सासादन गुणस्थान में होते हैं।
मिथ गुणस्थान में दस योग और उदयपद ३२ हैं। यहाँ सब योगों में सब उदयपद और उनके कुल भङ्ग संभव हैं, अत: १० को ३२ से गुणित करके २४ से गणित करने पर (३२४ १०८-३२० x २४ =७६८०) ७६८० पदवृन्द प्राप्त होते हैं। ____ अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में योग १३ और उदयपद ६० होते हैं । सो यहाँ १० योगों में तो सब उदयपद और उनके कुल भङ्ग संभव होने से १० से ६० को गुणित करके २४ से गुणित कर देने पर १० योगों संबंधी कुल भङ्ग १४४०० प्राप्त होते हैं । किन्तु वैक्रियमिश्र काययोग और कार्मण काययोग में स्त्रीवेद का उदय नहीं होने से स्त्रीवेद संबंधी भङ्ग प्राप्त नहीं होते हैं, इसलिये यहां २ को ६० से गुणित करके १६ से गुणित करने पर उक्त दोनों योगों सम्बन्धी कुल भङ्ग १९२० प्राप्त होते हैं तथा औदारिकमिश्न काययोग में स्त्रीवेद
और नपुंसकवेद का उदय नहीं होने से दो योगों संबंधी भङ्ग प्राप्त नहीं होते हैं । अत: यहाँ ६० को ८ से गुणित करने पर औदारिकमिश्र काययोग की अपेक्षा ४८० भङ्ग प्राप्त होते हैं। इस प्रकार चौथे अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में १३ योग संबंधी कुल पदवन्द १४४००+१६२०+४० = १६८०० होते हैं।
देशविरत गुणस्थान में योग ११ और पद ५२ हैं और यहाँ सब योगों में सब उदयपद और उनके भङ्ग सम्भव है अत: यहाँ ११ से ५२ को गुणित करके २४ से गुणित करने पर कुल भङ्ग १३७२८ होते हैं ।