Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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षष्ठ कर्मग्रन्थ
२७३ पाथार्थ-~-मिथ्यात्व गुणस्थान में सात से लेकर उत्कृष्ट दस प्रकृति पर्यन्त, सासादन और मिश्त्र में सात से नौ पर्यन्त, अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में छह से नौ तक, देशविरत में पांच से आठ पर्यन्त तथा
प्रमत्त और अप्रमत्त संयत गुणस्थान में चार से लेकर सात तक, अपूर्वकरण में चार से छह तक और अनिवृत्तिघादर गुणस्थान में एक अथवा दो उदयस्थान मोहनीयकम के होते हैं।
सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान वाला एक प्रकृति का वेदन करता है और इसके आगे के शेष गुणस्थान वाले अवेदक होते हैं, इनके भंगों का प्रमाण पहले कहे अनुसार जानना चाहिए। विशेषार्थ-इन तीन गाथाओं में मोहनीयकर्म के गुणस्थानों में उदयस्थान बतलाये हैं कि किस गुणस्थान में एक साथ अधिक से अधिक कितनी प्रकृतियों का और कम से कम कितनी प्रकृतियों का उदय होता है। ____मोहनीयकर्म की कुल उत्तर प्रकृतियाँ २८ हैं। उनमें से एक साथ अधिक से अधिक दस प्रकृतियों का और कम से कम एक प्रकृति का एक काल में उदय होता है। इस प्रकार से एक से लेकर दस तक, दस उदयस्थान होना चाहिये किंतु तीन प्रकुतियों का उदय कहीं प्राप्त नहीं होता है क्योंकि दो प्रकृतिक उदयस्थान में हास्य-रति युगल या अरति-शोक युगल इन दोनों युगलों में से किसी एक युगल के मिलाने पर चार प्रकृतिक उदयस्थान ही प्राप्त होता है । अतः तीन प्रकृ. तिक उदयस्थान नहीं बतलाकर शेष १, २, ४, ५, ६, ७, ८, ९, और १० प्रकृतिक ये कुल नौ उदयस्थान मोहनीयकर्म के बतलाये हैं।