Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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सप्ततिका प्रकरण
उदयस्थान जानना चाहिये तथा भंगों की एक चौबीसी होती है। इस प्रकार आठवे 'गुणस्थान में भंगों की चार चौबीसी होती हैं ।
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'अनियfबारे पुर्ण इक्को वा दुवे व' - अर्थात् नौवें अनिवृत्तिकादर गुणस्थान में से दो प्रकृतिक और एक प्रकृतिक । यहाँ दो प्रकृतिक उदयस्थान में संज्वलन कषाय चतुष्क मैं से किसी एक कषाय और तीन वेदों में से किसी एक वेद का उदय होता है। यहां तीन बेदों से संज्वलन कषाय चतुष्क को गुणित करने पर १२ भंग प्राप्त होते हैं । अनन्तर वेद का विच्छेद हो जाने पर एक प्रकृतिक उदयस्थान होता है, जो चार, तीन, दो और एक प्रकृतिक बंध के समय होता है । अर्थात् सवेद भाग तक दो प्रकृतिक और अवेद भाग में एक प्रकृतिक उदयस्थान समझना चाहिये । यद्यपि एक प्रकृतिक उदय में चार प्रकृतिक बंध की अपेक्षा चार, तीन प्रकृतिक बंध की अपेक्षा तीन, दो प्रकृतिक बंध की अपेक्षा दो, और एक प्रकृतिक बंध की अपेक्षा एक, इस प्रकार कुल दस भंग बतलाये हैं किन्तु यहाँ बंधस्थानों के भेद की अपेक्षा न करके सामान्य से कुल चार भंग विवक्षित हैं ।
दसवें सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान में एक सूक्ष्म लोभ का उदय होने से वहाँ एक ही भंग होता है - एगं सुहुमरारागो वेएइ' । इस प्रकार एक प्रकृतिक उदयस्थान में कुल पाँच भंग जानना चाहिये ।
दसवें गुणस्थान के बाद आगे के उपशान्तमोह आदि गुणस्थानों में मोहनीयकर्म का उदय न होने से उन गुणस्थानों में उदय की अपेक्षा एक भी भंग नहीं होता है ।
इस प्रकार यहाँ गाथाओं के निर्देशानुसार गुणस्थानों में मोहनीय कर्म के उदयस्थानों और उनके भंगों का कथन किया गया है और गाथा के अंत में जो भंगों का प्रमाण पूर्वोद्दिष्ट कम से जानने का