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षष्ट कर्म ग्रन्थ
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संकेत दिया है सो उसका तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार पहले सामान्य से मोहनीयकर्म के उदयस्थानों का कथन करते समय भंग बतला आये हैं, उसी प्रकार यहाँ भी उनका प्रमाण समझ लेना चाहिये । स्पष्टता के लिये पुन: यहां भी उदयस्थानों का निर्देश करते समय भंगों का संकेत दिया है। लेकिन इस निर्देश में पूर्वोल्लेख से किसी प्रकार का अंतर नहीं समझना चाहिये ।
अब मिथ्यादृष्टि आदि गुणस्थानों की अपेक्षा दस से लेकर एक पर्यन्त उदयस्थानों के भंगों की संख्या बतलाते हैं
एक्क छडेक्कारेकारसेव एक्कारसेव नव तिन्नि । एए चरबीसगया बार दुगे पंच एक्कम्मि ||४६ ॥ शब्दार्थ –एक्क—एक छडेकार छह, ग्यारह इक्कारसेव- ग्यारह, नव-नो, तिन्नि तीन, एए - यह बचवीस गया— चौबीसी मंग, बार-बारह मंग, दुगे- दो के उदय में पंच-पांच एक्कसि - एक के उदय में ।
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गाथार्थ - दो और एक उदयस्थानों को छोड़कर दस आदि उदयस्थानों में अनुक्रम से एक. छह ग्यारह, ग्यारह नौ और तीन चौबीसी भंग होते हैं तथा दो के उदय में बारह और एक के उदय में पाँच भंग होते हैं ।
विशेषार्थ - मोहनीयकर्म के नौ उदयस्थानों को पहले बतलाया जा चुका है। इस गाथा में प्रकृति संख्या के उदयस्थान का उल्लेख न करके उस स्थान के भंगों की संख्या को बतलाया है। वह अनुक्रम से इस प्रकार समझना चाहिये कि दस प्रकृतिक उदयस्थान में भंगों की एक चौबीसी, नौ प्रकृतिक उदयस्थान में भंगों की छह चौबीसी, आठ प्रकृतिक उदयस्थान में ग्यारह चौबीसी, सात प्रकृतिक उदयस्थान में ग्यारह चौबीसी, छह प्रकृतिक उदयस्थान में ग्यारह
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