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पाठ कर्मग्रन्थ
२८५ इसीलिए इन तीन योगों में भंगों की कुल बारह चौबीसी मानी हैं। इनको पूर्वोक्त ८० चौबीसी में मिला देने पर (८०+१२-१२) कुल' ६२ चौबीसी होती है और इनके कुल मा ५४ गुणा करले पर २२०८ होते हैं।
दूसरे सासादन गुणस्थान में भी योग १३ होते हैं और प्रत्येक योग की चार-चार चौबीसी होने से कुल भंगों की ५२ चौबीसी होनी चाहिए थी किन्तु सासादन गुणस्थान में नपुंसकवेद का उदय नहीं होता है, अत: बारह योगों की तो ४८ चौबीसी हुई और वैक्रियमिश्र काययोग के ४ षोडशव हुए। इस प्रकार ४८ को २४ से गुणा करने पर ११५२ भंग हुए तथा इस संख्या में चार षोडकश के ६४ भंग मिला देने पर सासादन गुणस्थान में सब भंग १२१६ होते हैं ।
सम्यगमिथ्यादृष्टि गुणस्थान में चार मनोयोग, चार वचनयोग और औदारिक व वैक्रिय ये दो काययोग कुल दस योग हैं और प्रत्येक योग में भंगों की ४ चौबीसी । अतः १० को चार चौबीसियों से गुणा कारने पर २४४४ = ६६ ४ १० = ६६० कुल भंग होते हैं ।
__ अविरत सम्यग्दृष्टि मुणस्थान में १३ योग और प्रत्येक योग में भंगों की ८ चौबीसी होनी चाहिये थीं । किन्तु ऐसा नियम है कि चौथे गुणस्थान के बैंक्रियमिश्र काययोग और कार्मण काययोग में स्त्रीवेद नहीं होता है, क्योंकि अविरत सम्यग्दृष्टि जीव मरकर स्त्री वेदियों में उत्पन्न नहीं होता है । इसलिए इन दो योगों में भंगों की ८ चौबीसी प्राप्त न होकर ८ षोडशक प्राप्त होते हैं । इसके कारण को स्पष्ट करते हुए आचार्य मलयगिरि ने कहा है कि-स्त्रीवेदी सम्याइष्टि जीव वैक्रियमिध काययोगी और कार्मण काययोगी नहीं होता है। यह कथन बहुलता की अपेक्षा से किया गया है, वैसे कदाचित इनमें भी