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बष्ठ कर्मग्रन्थ
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छह प्रकृतिक उदयस्थान में भी भंगों की ग्यारह चौबीसी इस प्रकार है- अविरत सम्यग्दृष्टि और अपूर्वकरण में एक-एक तथा देशविरत, प्रमत्तविरत, अप्रमत्तविरत में तीन-तीन इनका जोड़ कुल ग्यारह होता है । पाँच प्रकृतिक उदयस्थान में भंगों की नो चौबीसी हैं। उनमें से देशबिरत में एक, प्रमत्त और अप्रमत्त विरत गुणस्थानों में से प्रत्येक में तीन-तीन और अपूर्वकरण में दो चौबीसी होती हैं। चार प्रकृतिक उदयस्थान में प्रमत्तविरत, अप्रमत्तविरत और अपूर्वकरण गुणस्थान में भंगों की एक-एक चौबीसी होने से कुल तीन चौबीसी होती हैं । इन सबों की शुचि होती हैं तथा दो प्रकृतिक उदयस्थान के बारह और एक प्रकृतिक उदयस्थान के पाँच भंग हैं— 'बार दुर्गे पंच एक्कम्मि' जिनका स्पष्टीकरण पूर्व गाथा के संदर्भ में किया जा चुका है।
इस प्रकार दस से लेकर एक प्रकृतिक उदयस्थानों में कुल मिलाकर ५२ चौबीसी और १७ भंग प्राप्त होते हैं। जिनका गुणस्थानों की अपेक्षा अन्तर्भाष्य गाथा में निम्न प्रकार से विवेचन किया गया हैअट्टग च च चउरट्ठगा य चउरो य होंति घडवीसा । अपुषवंता वारस पण च अनियट्टे ॥
मिच्छा अर्थात् मिथ्यादृष्टि से लेकर अपूर्वकरण तक आठ गुणस्थानों में भंगों की क्रम से आठ, चार, चार, आठ, आठ आठ, आठ, और चार चौवीसी होती हैं तथा अनिवृत्तिबादर गुणस्थान में बारह और पाँच भंग होते हैं ।
इस प्रकार भंगों के प्राप्त होने पर कुल मिलाकर १२६५ उदय विकल्प होते हैं, वे इस प्रकार समझना चाहिये कि ५२ चौबीसियों की कुल संख्या ५२४८ (५२ x २४ = १२४८ ) और इसमें अनिवृत्तिबादर गुणस्थान के १७ मंगों को मिला देने पर १२४८ + १७= १२६५ संख्या होती है तथा १० से लेकर ४ प्रकृतिक उदयस्थानों तक के सब पद ३५२ होते हैं, अत: इन्हें २४ से गुणित करने देने पर ८४४८ प्राप्त होते