Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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२६.
सप्ततिका प्रकरण
का दूसरा भङ्ग प्राप्त होता है । इस प्रकार क्षीणमोह गुणस्थान में भी दो भंग प्राप्त होते हैं।
इस प्रकार से ज्ञानावरण, अंतराय और दर्शनावरण कर्म की उत्तर प्रकृतियों के गुणस्थानों में बंध, उदय और सत्ता स्थानों को बतलाने के बाद अब वेदनीय, आयु और गोत्र कर्मों के भंगों को बतलाते हैं। बेयणियाउयगोए विभज्ज मोहं पर बोच्छ ॥४१॥
शब्दार्थ-वेणियाउयगोए-वेदनीय, आयु और गोत्र कर्म के, विभाज-विभाग करके, मोझ--मोहनीय कर्म के, पर- इसके बाद, बोध-कहेंगे।
गाथा-बेदनीय, आयु और गोत्र कर्म के भंगों का कथन करने के बाद मोहनीय कर्म के भंगों का कथन करेंगे ।
ोिवा-गाथा में वेदनीय, आयु और गोत्र कर्म के भंगों के विभाग करने की सूचना दी है किन्तु उनके कितने-कितम भंग होते हैं यह नहीं बतलाया है । अत: आचार्य प्रलयगिरि की टीका में भाष्य की गाथाओं के आधार पर वेदनीय, आयु और गोत्र कर्म के जो भंगविकल्प बतलाये हैं, उनको यहाँ स्पष्ट करते हैं।
भाष्य की गाथा में वेदनीय और गोत्र कर्म के भङ्गों का निर्देश इस प्रकार किया गया है
पर घस्सु वोणि सत्तसु एगे घउ गुगिसु श्रेणियभंगा।
गोए पण घउ थी तिमु एमज्यू बोणि एकस्मि ।। अर्थात् वेदनीय कर्म के छह गुणस्थानों में चार, सात में दो और एक में चार भङ्ग होते हैं तथा गोत्रकर्म के पहले में पाँच, दूसरे में चार, तीसरे आदि तीन में दो, छठे आदि आठ में एक और एक में एक भङ्ग होता है जिनका स्पष्टीकरण नीचे किया जाता है ।