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सप्ततिका प्रकरण
___ आयुकर्म का बन्ध सातवें गुणस्थान तक ही होता है । आगे आठवें अपूर्वक रण आदि शेष गुणस्थानों में नहीं होता है । किन्तु एक विशेषता है कि जिसने देवायु का बन्ध कर लिया, ऐसा मनुष्य उपशमश्रेणि पर आरोहण कर सकता है और जिसने देवायु को छोड़कर अन्य आयु का बन्ध किया है, वह, उपशमणि पर आरोहण नहीं करता है
तिसु माडगेसु बबेसु मेण सेति न आवहन ।' तीन आयु का बन्ध वारने वाला (देवायु को छोड़कर) जीव श्रेणि पर आरोहण नहीं करता है। अत: उपशमणि को अपेक्षा अपूर्वकरण आदि उपशांतमोह गुणस्थान पर्यन्त आठ, नौ, दस और ग्यारह, इन चार गुणस्थानों में दो-दो भङ्ग प्राप्त होते हैं--'दो चउसु' । वे दो भङ्ग इस प्रकार हैं-१ मनुष्यायु का उदय, मनुष्यायु की सत्ता, २ मनुष्यायु का उदय मनुष्य-देवायु की सत्ता । इनमें से पहला भङ्ग परभव संबंधी आयु बन्षकाल के पूर्व में होता और दूसरा भङ्ग उपरत बन्धकाल में होता है।
लेकिन क्षपकश्रेणि की अपेक्षा अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानों में मनुष्याय का उदय और मनुष्यायु की सत्ता, यही एवः भङ्ग होता है।
क्षीणमोह, सयोगिकेवली, अयोगिकेवली इन तीन गुणस्थानों में भी मनुष्यायु का उदय और मनुष्यायु की सत्ता, यही एक भङ्ग होता है'तीसु एक्क'। ___ इस प्रकार प्रत्येक गुणस्थान में आयकर्म के सम्भव भङ्गों का विचार किया गया कि प्रत्येक गुणस्थान में कितने-कितने भङ्ग होते हैं।
१४ गुणस्थानों में ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, आयु, गोत्र और अंतराय, इन छह कर्मों का विवरण इस प्रकार है
१ कर्म प्रकृति गाथा ३७५ ।