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पष्ट कर्मग्रन्थ
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दाना
गुणस्थान
ज्ञानाबरण
टनीय आयु | गोत्र | अंत राय
वरण
१ मिथ्यात्व
२ सासादन ३ मिश्न ४ अविरत ५ देशविरत . ६ प्रमलविरत ७ अपमत्तविरत
अपुर्वकरण अनिवृत्तिकरण सूक्ष्मसंपराम
उपशांतमोह १२ । क्षीणमोह
३ | मयोगिकेवली १४ | अयोगिकेवली
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अब गाथा के निर्देशानुसार मोहनीय कर्म के भंगों का विचार करते हैं । उनमें से भी पहले बंधस्थानों के भंगों को बतलाते हैं।
गुणठाणगेसु असु एक्केक्कं मोहबंधठाणेसु । पंचानियट्टिठाणे बंधोवरमो परं तत्तो ॥४२॥