Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
' षष्ठ कर्म ग्रन्थ
२०३
हैं । दस उदयस्थान २०,२१,२६,२७,२८,२९,३०,३१, ६ और ८ प्रकृतिक संख्या वाले हैं तथा सत्तास्थान ९३,६२,८६,८८,८०,७६,७६,७५, ६ और ६ प्रकृतिक संख्या वाले हैं । इनका स्पष्टीकरण यह है कि
केवली को केवली समुद्घात में ८ समय लगते हैं। इनमें से तीसरे, चौथे और पांचवें समय में कार्मण काययोग होता है जिसमें पंचेन्द्रिय जाति, असत्रिक, सुभग, आदेय, यश कीर्ति, मनुष्यगति और ध्रुवोदया १२ प्रकृतियां, इस प्रकार कुल मिलाकर २० प्रकृतिक उदयस्थान होता है और तीर्थंकर के बिना ७६ तथा तीर्थंकर और आहारकचतुष्क इन पाँच के बिना ७५ प्रकृतिक, ये दो सत्तास्थान होते हैं। यदि इस अवस्था में विद्यमान तीर्थकर हुए तो उनके एक तीर्थकर प्रकृति का उदय और सत्ता होने से २१ प्रकृतिक उदयस्थान तथा ८० तथा ७६ प्रकृतिक संसास्थान हो ।
जब केवली समुद्घात के समय औदारिकमिश्न काययोग में रहते हैं तब उनके औदारिकतिक, वचऋषभनाराच संहनन, छह संस्थानों में से कोई एक संस्थान, उपघात और प्रत्येक, इन छह प्रकृतियों को पूर्वोक्त २० प्रकृतियों में मिलाने पर २६ प्रकृतिक उदयस्थान होता है तथा ७६ और ७५ प्रकृतिक ये दो सत्तास्थान होते हैं।
यदि तीर्थंकर औदारिकमिश्र काययोग में हुए तो उनके तीर्थकर प्रकृति उदय व सत्ता में मिल जाने पर २७ प्रकृतिक उदयस्थान तथा ८० और ७६ प्रकृतिक, ये दो सत्तास्थान होते हैं।
२६ प्रकृतियों में पराघात, उच्छ वास, शुभ और अशुभ विहायोगति में से कोई एक तथा सुस्वर और दुःस्वर में से कोई एक, इन चार प्रकृतियों के मिला देने पर ३० प्रकृतिक उदयस्थान होता है जो
औदारिक काययोग में विद्यमान सामान्य केवली तथा ग्यारहवें और बारहवें गुणस्थान में प्राप्त होता है । अतएव ३० प्रकृतिक उदयस्थान