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सप्ततिका प्रकरण
पर्याप्त हुए जीव को होता है। यहाँ भी २४ प्रकृतिक उदयस्थान की तरह पाँच भङ्ग होते हैं ।
यदि शरीर पर्याप्ति से पर्याप्त हुए जोव के आतप और उद्योत में से किसी एक का उदय हो जावे तो २५ प्रकृतिक उदयस्थान में आतप और उद्योत में से किसी एक को मिलाने पर २६ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । किन्तु आतप का उदय साधारण को नहीं होता है, अतः इस पक्ष में २६ प्रकृतिक उदयस्थान के यशःकीर्ति और अयश:कीर्ति की अपेक्षा दो भंग होते हैं। लेकिन उद्योत का उदय साधारण और प्रत्येक, इनमें से किसी के भी होता है अतः इस पक्ष में साधारण और प्रत्येक तथा यशः कीर्ति और अयशः कीर्ति, इनके विकल्प से चार भंग होते हैं। इस प्रकार २६ प्रकृतिक उदयस्थान के कुल ५+२+४= ११ भंग हुए ।
अनन्तर प्राणापान पर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीव की अपेक्षा उच्छ्वास सहित २६ प्रकृतिक उदयस्थान में आतप और उद्योत में से किसी एक प्रकृति के मिला देने पर २७ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहाँ भी पहले के समान आतप के साथ दो भङ्ग और उद्योत के साथ चार भङ्ग, इस प्रकार कुल छह भङ्ग हुए।
इन पाँचों उदयस्थानों के भङ्ग जोड़ने पर बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त जीवस्थान के कुल भङ्ग २६ होते हैं ।
बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त जीवों के २६८० और ७८ प्रकृतिक, ये पाँच सत्तास्थान होते हैं । इस जीवस्थान में जो पाँचों उदयस्थानों के २६ भङ्ग बतलाये हैं, उनमें से इक्कीस प्रकृतिक उदयस्थान के दो भङ्ग, २४ प्रकृतिक उदयस्थान में वैक्रिय बादर वायुकायिक के एक भङ्ग को छोड़कर शेष चार भङ्ग तथा २५ और २६ प्रकृतिक उदयस्थानों में प्रत्येक नाम और अयशःकीर्ति नाम के साथ प्राप्त होने