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सप्ततिका प्रकरण
इस २६ प्रकृतिक उदयस्थान में शरीर पर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीव की अपेक्षा पराघात और अप्रशस्त विहायोगति, इन दो प्रकृतियों को मिलाने पर २८ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहां भी पूर्ववत् दो भङ्ग होते हैं।
२८ प्रकृतिक उदयस्थान के अनन्तर २६ प्रकृतिक उदयस्थान का क्रम है । यह २६ प्रकुतिक उदयस्थान दो प्रकार से होता है - एक तो जिसने प्राणापान पर्याप्ति को प्राप्त कर लिया है, उसके उद्योत के बिना केवल उच्छ्वास का उदय होने पर और दूसरा शरीर पर्याप्ति की प्राप्ति होने के पश्चात् उद्योल का उदय होने पर। इन दोनों में से प्रत्येक स्थान में पूर्वोक्त दो-दो भङ्ग प्राप्त होते हैं । इस प्रकार २० प्रकृतिक उदयस्थान के कुल चार भङ्ग हुए।
इसी प्रकार ३० प्रकृतिक उदयस्थान भी दो प्रकार से प्राप्त होता है। एक तो जिसने भाषा पर्याप्ति को प्राप्त कर लिया है, उसके उद्योत का उदय न होकर सुस्वर और दुःस्बर इन दो प्रकृतियों में से किसी एक का उदय होने पर होता है और दूसरा जिसने श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति को प्राप्त किया और अभी भाषा पर्याप्ति की प्राप्ति नहीं हुई किन्तु इसी बीच में उसके उद्योत प्रकृति का उदय हो गया तो भी ३० प्रकृतिक उदयस्थान हो जाता है। इनमें से पहले प्रकार के ३० प्रकृतिक उदयस्थान में यश:कीर्ति और अयश:कीति तथा सुस्वर और दुःस्वर के विकल्प से चार भङ्ग प्राप्त होते हैं। किन्तु दूसरे प्रकार के ३० प्रकृतिक उदयस्थान में यशःकीति और अयश कीर्ति के विकल्प से दो ही भङ्ग होते हैं। इस प्रकार ३० प्रकृतिक उदयस्थान में छह भङ्ग प्राप्त हुए। १ ततः प्राणापानपर्याप्या पर्याप्तस्योच्छवासे क्षिप्ते एकोत्रिशत्, अत्राषि
तावेन द्वौ मङ्गी; अथवा तस्यामेवाष्टा विशती उच्छ्वासेऽनुदिते उद्योतनाम्नि तूदिते एकोनत्रिंशत् । ---सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ. २०३