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षष्ठ कर्मग्रन्थ
२४१ की अपेक्षा सुभगत्रिक की अपेक्षा से पूर्वोक्त ८ भङ्गों में दो बार छह से गुणित कर देने पर X६x६:२८८ भङ्ग प्राप्त होते हैं।
अनंतर इसके शरीर पर्याप्ति से पर्याप्त हो जाने पर पराघात तथा प्रशस्त विहायोगति और अप्रशस्त बिहायोगति में से किसी एक का उदय और होने लगता है। अत: २६ प्रकृतिक उदयस्थान में इन दो प्रकृतियों को और मिला देने पर २८ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहाँ दोनों विहायोगतियों के विकल्प की अपेक्षा भङ्गों के विकल्प पूर्वोक्त २८८ को दो से गुणा कर देने पर २८८४२-५७६ हो जाते हैं । २६ प्रकृतिक उदयस्थान दो प्रकार से होता है-एक तो जिसने आन-प्राण पर्याप्ति को पूर्ण कर लिया है उसके उद्योत के बिना केवल उच्छ्वास के उदय से प्राप्त होता है और दूसरा शरीर पर्याप्ति के पूर्ण होने पर उद्योत प्रकृति के उदय से प्राप्त होता है । इन दोनों स्थानों में से प्रत्येक स्थान में ५७६ भङ्ग होते हैं । अत: २६ प्रकृतिक उदयस्थान यो कुल ५७६ ४२=११५२ भङ्ग हुए।
३० प्रकृतिक उदयस्थान भी दो प्रकार से प्राप्त होता है । एक तो जिसने भाषा पर्याप्ति को पूर्ण कर लिया उसके उद्योत के बिना सुस्वर और दुःस्वर प्रकृतियों में से किसी एक प्रकृति के उदय से प्राप्त होता है और दूसरा जिसने श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति को पूर्ण कर लिया, उसके उद्योत का उदय हो जाने पर होता है। इनमें से पहले प्रकार के स्थान के पूर्वोक्त ५७६ भङ्गों को स्वरद्विक से गुणित करने पर ११५२ भङ्ग प्राप्त होते हैं तथा दूसरे प्रकार के स्थान में ५७६ भंग ही होते हैं । इस प्रकार ३० प्रकृतिक उदयस्थान के कुल भंग ११५२+५७६ = १७२८ होते हैं।
अनन्तर जिसने भाषा पर्याप्ति को भी पूर्ण कर लिया और उद्योत प्रकृति का भी उदय है उसके ३१ प्रकृतिक उदयस्थान होता है ।
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