________________
सप्त तिका प्रकरण
अब क्रमप्राप्त अंसजी पर्याप्त जीवस्थान में अंधादि स्थानों और उनके भङ्गों का निर्देश करते हैं। इसके लिये गाथाओं में निर्देश किया है—'लच्छप्पण' 'असन्नी य' अर्थात् असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवस्थान के छह बंघस्थान हैं, छह उदयस्थान है और पाँच सत्तास्थान हैं। जिनका विवेचन यह है कि असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीव मनुष्यगति.
और तिर्यंचगति के योग्य प्रकृतियों का बंध करते ही हैं, किन्तु नरकगति और देवगति के योग्य प्रकृतियों का भी बंध कर सकते हैं। इसलिये इनके २३, २५, २६, २८, २६ और ३० प्रकृतिक ये छह बंधस्थान होते हैं और तदनुसार १३६२६ भङ्ग होते हैं।
उदयस्थानों की अपेक्षा विचार करने पर यहाँ २१, २६, २८, २९, ३० और ३१ प्रकृतिक, ये छह उदयस्थान हैं। इनमें से २१ प्रकृतिक उदयस्थान में तेजस, कार्मण, अगुरुलघु, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, वर्णचतुष्क, निर्माण, तिर्यंचगति, तिर्यंचानुपूर्वी, पंचेन्द्रिय जाति, प्रस, बादर, पर्याप्त, सुभग और दुर्भग में से कोई एक, आदेय और अनादेय में से कोई एक तथा यशःकीति और अयश:कीति में से एक, इन २१ प्रकृतियों का उदय होता है। यह २१ प्रकृतिक उदयस्थान अपान्तरालगति में ही पाया जाता है तथा सुभग आदि तीन युगलों में से प्रत्येक प्रकृति के विकल्प से ८ भङ्ग प्राप्त होते हैं।
अनन्तर जब यह जीव शरीर को ग्रहण कर लेता है तब औदारिक शरीर, औदारिक अंगोपांग, यह संस्थानों में से कोई एक संस्थान, छह संहननों में से कोई एक संहनन, उपधात और प्रत्येक इन छह प्रकृतियों का उदय होने लगता है। किन्तु यहाँ आनुपूर्वी नामकर्म का उदय नहीं होता है। अतएव उक्त २१ प्रकृतिक उदयस्थान में छह प्रकृतियों को मिलाने और तिर्यंचानुपूर्वी को कम करने पर २६ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ छह संस्थान और छह संहननों