Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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मप्ततिका प्रकरण इस प्रकार चौदह जीवस्थानों में बंधादि स्थानों और उनके भंगों का विचार किया गया। अब उनके परस्पर संबंध का विचार करते हैं।
सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवों के २३ प्रकृतिक बंधस्थान में २१ प्रकृतिक उदयस्थान के रहते ६२, ८८, ८६, ६० और ७८ प्रकृतिक, ये पांच सत्तास्थान होते हैं। इसी प्रकार २४ प्रकृतिक उदयस्थान में भी पांच सत्तास्थान होते हैं । कुल मिलाकर दोनों उदयस्थानों के १० सत्तास्थान हुए । इसी प्रकार २५, २६, २६ और ३० प्रकृतियों का बंध करने वाले उक्त जीवों के दो-दो उदयस्थानों की अपेक्षा दस-दस सत्तास्थान होते हैं। जो कुल मिलाकर ५० हुए। इसी प्रकार बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त आदि भा छ अपर्याप्तों के ५०-: मनास्थान जानना किन्तु सर्वत्र अपने-अपने दो-दो उदयस्थान कहना चाहिये।
सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त के २३, २५, २६, २६ और ३० प्रकृतिक, ये पांच बंधस्थान होते हैं और एक-एक बंधस्थान में २१, २४, २५ और २६ प्रकृतिक, ये चार उदयस्थान होते हैं । अत: पांच को चार से गुणित करने पर २० हुए तथा प्रत्येक उदयस्थान में पांच-पांच सत्तास्थान होते है अत: २० को ५ से गुणा करने पर १०० सत्तास्थान मूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त जीवस्थान में होते हैं।
बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त के भी पूर्वोक्त २३, २५, २६, २१ और ३० प्रकृतिक, पांच बंधस्थान होते हैं और एक-एक बंधस्थान में २१, २४, २५, २६ और २७ प्रकृतिक, ये पांच-पांच उदयस्थान होते हैं, अत: ५ को ५ से गुणा करने पर २५ हुए। इनमें से अन्तिम पांच उदयस्थानों में - के बिना चार-चार सत्तास्थान होते हैं, जिनके कुल भंग २० हुए और शेष २० उदयस्थानों में पांच-पांच सत्तास्थान होते हैं, जिनके कुल भंग १०० हुए । इस प्रकार यहाँ कुल भंग १२० होते हैं।
द्वीन्द्रिय पर्याप्त के २३, २५, २६, २७ और ३० प्रकृतिक, ये पांच