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सप्ततिका प्रकरण
दो सत्तास्थान जानना चाहिए। २१ तथा २७ प्रकृतिक उदयस्थान में ८० और ७६ प्रकृतिक, ये दो सत्तास्थान होसे हैं । २६ प्रकृतिक उदयस्थान में ८०, ७६, ७६ और ७५ प्रकृतिक ये चार सत्तास्थान होते हैं। क्योंकि २६ प्रकृतिक उदयस्थान तीर्थकर और सामान्य केवली दोनों को प्राप्त होता है। उनमें से चांद तीर्थंकार को २९ प्रतिक उदयस्थान होगा तो ८० और ७६ प्रकृतिक ये दो सत्तास्थान होंगे और यदि सामान्य केवली के २६ प्रकृतिक उदयस्थान होगा तो ७६ और ७५ प्रकृतिक, ये दो सत्तास्थान होंगे। इसी प्रकार ३० प्रकृतिक उदयस्थान में भी चार सत्तास्थान प्राप्त होते हैं । ३१ प्रकृतिक उदयस्थान में म०
और ७६ प्रकृतिक, ये दो सत्तास्थान होते हैं, क्योंकि यह उदयस्थान तीर्थकर केवली के ही होता है । ६ प्रकृतिक उदयस्थान में ८०, ७६ और ६ प्रकृतिक, ये तीन सत्तास्थान होते हैं। इनमें से प्रारम्भ के दो सत्तास्थान तीर्थंकर के अयोगिकेवली गुणस्थान के उपान्त्य समय तक होता है और अन्तिम ६ प्रकृतिक सत्तास्थान अयोगिकेवली गुणस्थान के अंत समय में होता है। 5 प्रकृतिक उदयस्थान में ७६, ७५ और प्रकृतिक, ये तीन सत्सास्थान होते हैं। इनमें से आदि के दो सत्तास्थान (७६, ७५) सामान्य केवली के अयोगिकेवली गुणस्थान के उपान्त्य समय तक प्राप्त होते हैं और अन्तिम ८ प्रकृतिक ससास्थान अन्तिम समय में प्राप्त होता है । इस प्रकार ये २६ सत्तास्थान होते हैं।
अब यदि इन्हें पूर्वोक्त २०० सत्तास्थानों में शामिल कर दिया जाये तो संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवस्थान में कुल २३४ सत्तास्थान होते हैं।
चौदह जीवस्थानों में नामकर्म के बंषस्थानों, उदयस्थानों और उनके भंगों का विवरण नीचे लिखे अनुसार है । पहले बंधस्थानों और उनके भंगों को बतलाते हैं।