Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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THE प्रकरण
अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानों में, उपण—चार अथवा पाँच, नवंस-नौ को सता, बुधु दो गुणस्थानों (अनिवृत्तिबावर और सुक्ष्मसंपराय) में, जुपल-बंध और उदय, छस्संता-छह की सत्ता।
उनसते-उपशांतमोह गुणस्थान में, चउ पण-चार अथवा पांच, नव-नी, खोणे- क्षीणमोह गुणस्थान में, घसरूम-चार का उदय, छनच उछह और चार की, संतं- सत्ता । ___ गाणार्य-दूसरे दर्शनावरण कर्म का मिथ्यात्व और सासादन गुणस्थान में नौ प्रकृतियों का बंध, चार या पांच प्रकृतियों का उदय तथा नौ प्रकृति की सत्ता होती है।
मिश्र गुणस्थान से लेकर अपूर्वकरण गुणस्थान के पहले संख्यातवें भाग तक छह का बंध, चार था पाँच का उद्रय और नौ की सत्ता होती है। अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानों में चार का बंध, चार था पनि का उदय और नौ की सत्ता होती है। क्षपक के नौ और दस इन दो गुणस्थानों में चार का बंध, चार का उदय और छह की सत्ता होती है।
उपशांतमोह गुणस्थान में चार या पांच का उदय और नौ की सत्ता होती है । क्षीणभोह गुणस्थान में चार का उदय तथा छह और चार की सत्ता होती है।'
१ (क) मिच्छा सासयणेसु नब बंध वलविस्त्रया में दो मंगा ।
मीसाओ य लियट्टी जा छब्बंधेण दो दो उ॥ च उबंधे नवसंते छोगिण अपुरबाउ सुहमरागो जा । अब्बंधे णव संते वयसते हुति हो मंगा ।। चउबंधे छस्ससे बायर सुहुमाणमेगुषस्व वयाणं । छसु च उमु व संतेसु दोणि अबधंमि ख़ीणरस ।।
पंचसंग्रह सप्ततिका गा० १०२-१०४ (ख) णव सासणोत्ति बंधो छच्चेव अपुरवपढमभागोति ।
चत्तारि होति तत्तो सुखमकसायस्स चरमोसि ।।