Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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सरततिका प्रकरण
यहाँ कुल भंग ११५२ होते हैं । इस प्रकार असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवस्थान के सब उदयस्थानों के कुल ४६०४ भङ्ग होते हैं। ___असंजी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवस्थान में ६२. ८८, ८६, ८० और ७८ प्रकृतिक ये पांच सत्तास्थान होते हैं। इनमें से २१ प्रकृतिक उदयस्थान के ८ भङ्ग तथा २६ प्रकृतिक उदयस्थान के २८८ भङ्ग, इनमें से प्रत्येक भङ्ग में पूर्वोक्त पाँच-पाँच सत्तास्थान होते हैं। क्योंकि ७८ प्रकृतियों की सत्ता वाले जो अग्निकायिक और वायुकायिक जीव हैं वे यदि असंझी पंचेन्द्रिय पर्याप्तकों में उत्पन्न होते हैं तो उनके २१ और २६ प्रकृतिक उदयस्थान रहते हुए ७८ प्रकृतिक सत्तास्थान पाया जाना संभव है। किन्तु इनके अतिरिक्त शेष उदयस्थानों और उनके भङ्गों में ७८ के बिना शेष चार-चार सत्तास्थान ही होते हैं।
इस प्रकार से अभी तक तेरह जीवस्थानों के नामकर्म के बंधादि स्थानों और उनके मङ्गों का विचार किया गया। अब शेष रहे चौदहवें संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवस्थान के बंधादि स्थानों व भङ्गों का निर्देश करते हैं । इस जीवस्थान के बंधादि स्थानों के लिये गाथा में संकेत किया गया है.-'अट्टठ्ठदसगं ति सन्नी य' अर्थात् संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवस्थान में आठ बंधस्थान, आळं उदयस्थान और दस सत्तास्थान है । जिनका स्पष्टीकरण नीचे किया जाता है।
नाम कर्म के २३, २५ २६, २८ २६, ३०, ३१ और १ प्रकृतिक, ये आठ बंधस्थान बतलाये हैं। ये आठों बंधस्थान संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवों के होते हैं और उनके १३६४५ भङ्ग संभव हैं। क्योंकि इनके चारों गति सम्बन्धी प्रकृतियों का बंध सम्भव है, इसीलिये २३ प्रकृतिक आदि बंधस्थान इनके कहे हैं। तीर्थंकर नाम और आहारकचतुष्क का भी इनके बंध होता है इसीलिये ३१ प्रकृतिक बंधस्थान कहा है। इस जीवस्थान में उपशम और क्षपक दोनों श्रेणियाँ पाई जाती हैं इसीलिये १ प्रकृतिक बंधस्थान भी कहा है ।