Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
पष्ठ कर्मग्रन्थ
२३५ बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त जीवस्थान के २१ प्रकृतिक उदयस्थान में ६१ प्रकृतियाँ इस प्रकार हैं-तिर्यंचगति, तिर्य चानुपूर्वी, एकेन्द्रिय जाति, स्थावर, बादर, पर्याप्त, तेजस, कार्मण, अगुरुलघु, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, वर्णचतुष्क, निर्माण, दुभंग, अनादेय, यशःकीति और अयश:कीर्ति में से कोई एक । इस उदयस्थान में यश:कीति और अयशःकीर्ति का उदय विकल्प से होता है। अत: इस अपेक्षा से यहाँ २१ प्रकृतिक उदयस्थान के दो भंग होते हैं।
उक्त २१ प्रकृतिका उपचन में शरीरस्य जीव की अपेक्षा औदारिक शरीर, हुंडसंस्थान, उपघात तथा प्रत्येक और साधारण में से कोई एक, इन चार प्रकृतियों को मिलाने तथा तिर्यंचानुपूर्वी को कम करने पर २४ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहाँ प्रत्येक-साधारण और यश कीति-अयशःकीति का विकल्प से उदय होने के कारण चार भंग होते हैं। किन्तु इतनी विशेषता है कि शरीरस्थ विक्रिया करने वाले बादर वायुकायिक जीवों के साधारण और यशःकीति नामकर्म का उदय नहीं होता है, इसलिये वहाँ एक ही भंग होता है। दूसरी विशेषता यह है कि ऐसे जीवों के औदारिक शरीर का उदय न होकर वैकिय शरीर का उदय होता है, अतः इनके औदारिक शरीर के स्थान पर बैंक्रिय शरीर कहना चाहिए।' इस प्रकार २४ प्रकृतिक उदयस्थान में कुल पांच भंग हुए।
अनन्तर २४ प्रकृतिक उदयस्थान में पराघात प्रकृति को मिलाने से २५ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यह उदयस्थान शरीर पर्याप्ति से
१ वक्कियं कुर्वत: पुन दरवायुकायिकस्यकः, पसस्तस्य साधारण-यशःकीर्ती
उदयं नागच्छतः, अन्यच्च वैकियवायुकायिकचतुचियातायौदारिकशरीरस्थाने दैक्रियशरीरमिति वक्तव्यम् ।
-~-~सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० २०२