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सप्ततिका प्रकरण
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शब्दार्थ - अनुसु - आठ जीवस्थानों ने पंचसु-पाँच जीवस्थानों में, एगे -- एक जीवस्थान में, एग – एक, दुर्गा-दो, दलदस और मोहबंध गए - मोहनीय कर्म के बंधगत स्थानों में, तिग उन-तीन बार और नौ, उदय गए --- उदयगत स्थान, लिंग तिग पन्नरस तीन तीन और पन्द्रह समि-सता के स्थान |
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गावार्थ- आठ, पाँच और एक जीवस्थान में मोहनीय कर्म के अनुक्रम से एक, दो और दस बंधस्थान, तीन, चार और मौ उदयस्थान तथा तीन तीन और पन्द्रह सत्तास्थान होते हैं ।
विशेषार्थ - इस गाथा में मोहनीय कर्म के जीवस्थानों में बंध, उदय और सत्ता स्थान बतलाये हैं और जीवस्थानों तथा बंधस्थानों, उदयस्थानों तथा सत्तास्थानों की संख्या का संकेत किया है कि कितने जीवस्थानों में मोहनीय कर्म के कितने बंधस्थान हैं, कितने उदयस्थान हैं और कितने सत्तास्थान हैं। परन्तु यह नहीं बताया है कि वे कौन-कौन होते हैं। अतः इसका स्पष्टीकरण नीचे किया जा रहा है।
आठ, पाँच और एक जीवस्थान में यथाक्रम से एक, दो और दस बंधस्थान हैं । अर्थात् आठ जीवस्थानों में एक बंधस्थान है, पाँच जीवस्थानों में दो बंधस्थान हैं और एक जीवस्थान में दस बंधस्थान हैं। इनमें से पहले आठ जीवस्थानों में एक बंधस्थान होने को स्पष्ट करते हैं कि पर्याप्त सुक्ष्म एकेन्द्रिय, अपर्याप्त सुक्षा एकेन्द्रिय, अपर्याप्त बादर एकेन्द्रिय, अपर्याप्त द्वीन्द्रिय, अपर्याप्त श्रीन्द्रिय, अपर्याप्त चतुरिन्द्रिय, अपर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय और अपर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय, इन आठ जीवस्थानों में पहला मिध्यादृष्टि गुणस्थान ही होता है अतः इनके एक २२ प्रकृतिक बंधस्थान होता है । वे २२ प्रकृतियाँ इस प्रकार हैं - मिध्यात्व, अनन्तानुबंधी कषाय चतुष्क आदि सोलह कषाय, तीन वेदों में से कोई एक वेद, हास्य रति और शोक अरति युगल में से कोई