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सप्ततिका प्रकरण
I
में ६३,६२८६८६७६ और ७५ प्रकृतिक, ये छह सत्तास्थान होते हैं । इनमें से आदि के चार सत्तास्थान उपशान्तमोह गुणस्थान की अपेक्षा और अंत के दो सत्तास्थान क्षीणमोह और सयोगिकेवली की अपेक्षा बताये हैं । यदि इस ३० प्रकृतिक उदयस्थान में से स्वर प्रकृति को निकालकर तीर्थंकर प्रकृति को मिलायें तो भी उक्त उदयस्थान प्राप्त होता है जो तीर्थंकर केवली के वचनयोग के निरोध करने पर होता है । किन्तु इसमें सत्तास्थान ८० और ७६ प्रकृतिक, ये दो होते हैं। क्योंकि सामान्य केवली के जो ७६ और ७५ प्रकृतिक सत्तास्थान कह आये हैं उनमें तीर्थंकर प्रकृति के मिल जाने से ८० और ७६ प्रकृतिक हो सत्तास्थान प्राप्त होते हैं।
सामान्य केवली के जो ३० प्रकृतिक उदयस्थान बतलाया गया है, उसमें तीर्थंकर प्रकृति के मिलाने पर तीर्थंकर केवली के ३१ प्रकृतिक उदयस्थान होता है और उसी प्रकार ८० व ७६ प्रकृतिक, ये दो सत्तास्थान होते हैं। क्योंकि सामान्य केवली के ७५ और ७९ प्रकृतिक, थे दो सत्तास्थान बतलाये हैं, उनमें तीर्थंकर प्रकृति के मिलाने से ७६ और ८० की संख्या होती है ।
सामान्य केवली के जो ३० प्रकृतिक उदयस्थान बतला आये हैं, उसमें से वश्वनयोग के निरोध करने पर स्वर प्रकृति निकल जाती है, जिससे २६ प्रकृतिक उदयस्थान होता है अथवा तीर्थंकर केवली के जो ३० प्रकृतिक उदयस्थान बतलाया है उसमें से श्वासोच्छ् वास के निरोध करने पर उच्छवास प्रकृति के निकल जाने से २६ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। इनमें से पहला उदयस्थान सामान्य केवली के और दूसरा उदयस्थान तीर्थंकर केवली के होता है । अतः पहले २६ प्रकृतिक उदयस्थान में ७६ और ७५ प्रकृतिक और दूसरे २६ प्रकृतिक उदयस्थान में ८० और ७६ प्रकृतिक, ये दो सत्तास्थान होते हैं ।