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सामान्य और हैं, उतने विकल्प करना चाहिये ।
सप्तलिका प्रकरण
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विशेष से यहाँ जिस स्थान सम्भव
विशेषायं ग्रन्थ में पद्यपि नामकर्म के पहले बंधस्थान, उदयस्थान और सत्तास्थान बतलाये जा चुके हैं कि नामकर्म के बंघस्थान आठ हैं, उदयस्थान बारह हैं और सत्तास्थान भी बारह हैं । फिर भी यहाँ पुनः सूचना इनके संवेध भंगों को बतलाने के लिये की गई है।
इन संवेध भंगों को जानने के दो उपाय हैं-- १. ओघ और २. आदेश 1 ओघ सामान्य का पर्यायवाची है और आदेश विशेष का । यहाँ ओघ का यह अर्थ हुआ कि जिस प्ररूपणा में केवल यह बतलाया जाए किं अमुक बंधस्थान का बंध करने वाले जीव के अमुक उदयस्थान और अमुक सत्तास्थान होते हैं, इसको ओघप्ररूपण कहते हैं । आदेश प्ररूपण में मिथ्यादृष्टि आदि गुणस्थान और गति आदि मार्गणाओं में बंघस्थान, उदयस्थान और सत्तास्थानों का विचार किया जाता है । ग्रन्थकार ने ओघ और आदेश के संकेत द्वारा यह स्पष्ट किया है कि दोनों प्रकार से बंधस्थान आदि के संवेध भंगों को यहाँ बतलाया जायेगा |
अब सबसे पहले ओघ से संवेध भङ्गों का विचार करते हैं। तब पंचोदय संता तेवीसे पण्णवीस छवोसे । अट्ठ चउरटुबोसे नव सत्तुगतीस तीसम्मि ॥ ३१ ॥
शब्दार्थ पंच- नौ और पांच सवयसंत्ता--उदय और सत्ता स्थान, तेबीसे तेईस, पण्णवीस छब्बीसे पच्चीस और छब्बीस के बंधस्थान में अट्ठ-आठ, चउर-चार, भट्ठवीसेअट्ठाईस के बंघस्थान में नबनौ, सत्त—सात, पतीस सोसम्म – उनतीस और तीस प्रकृतिक वंषस्थान में ।