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सप्तत्तिका प्रकरण
तिक सत्तास्थान होता है। जब २२ प्रकृतियों में से इन तेरह प्रकृतियों का क्षय करते हैं, तब ७६ प्रकृतिक सत्तास्थान होता है और जब ८६ प्रकृतियों में से इन तेरह प्रकृतियों का क्षय करते हैं तब ७६ प्रकृतिक सत्तास्थान होता है तथा जब ८५ प्रकृतियों में से इन तेरह प्रकृतियों का क्षय कर देते हैं, तब ७५ प्रकृतिक सत्तास्थान होता है ।
अब रहे और ८ प्रकृतिक सत्तास्थान । सो ये दोनों अयोगिकेवली गुणस्थान के अन्तिम समय में होते हैं। नौ प्रकृतिक सत्तास्थान में मनुष्यगति, पंचेन्द्रिय जाति, त्रस, बादर, पर्याप्त, सुभग, आदेश, यश:कीर्ति और तीर्थंकर, ये नौ प्रकृतियां है और इनमें से तीर्थंकर प्रकृतिक को कम कर देने पर प्रकृतिक, सतास्थान होता है । गो० कर्मकांड और नामकर्म के सत्तास्थान
पूर्व में गाथा के अनुसार बारह सत्तास्थानों का कथन किया गया । लेकिन गो० कर्मकांड में ९३,६२,६१,६०८५८४८२८०७६ ७८, ७७, १० और १ प्रकृतिक कुल तेरह सत्तास्थान बतलायें हैंतिथुणिउदी णउदी अरबो अहियसीवि सीवी य । ऊणासीबट्ठसरि सत्तसरि यस व जब सत्ता ॥ ६०६ ॥ विवेचन इस प्रकार है
यहाँ ६३ प्रकृतिक सत्तास्थान में नामकर्म की सब प्रकृतियों की सत्ता मानी है। उनमें से तीर्थंकर प्रकृति को घटाने पर ६२ प्रकृतिक सत्तास्थान होता है । आहारक शरीर और आहारक अंगोपांग, इन दो प्रकृतियों को कम कर देने पर ६१ प्रकृतिक सत्तास्थान होता है | तीर्थकर आहारक शरीर और आहारक अंगोपांग को कम कर देने पर १० प्रकृतिक सत्तास्थान होता है। इसमें से देवद्विक की उवलना प्रकृतिक सत्तास्थान में से नरक
करने पर प्रकृतिक और इस
१ तुलनात्मक अध्ययन की दृष्टि से गो० कर्मकांड का अभिमत यहां दिया है ।