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सप्ततिका प्रकरण
नामकर्म के बंधस्थानों और उदयस्थानों का कथन करने के पश्चात् अब सत्तास्थानों का कथन करते हैं।
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तिबुनउई उगुनउई अट्ठच्छलसी असोइ उगुसीई । अयप्पणसारे नव अ य नामसंताणि ॥ २६ ॥ शब्दार्थ शिकुन उई -- तेरानवे, मानवे, उगुमराई - नवासी अटुलसी-अठासी छियासी, मसीह अस्सी, उसीई- उन्यासी, अट्टयम्रपणसरी अठहत्तर क्रियतर, पचहत्तर ती भट्ठ आठ, य- गौर, नामसंतापि नामकर्म के सत्तास्थान |
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नाथानं--- नामकर्म के ६३,६२,६६,८६,८०,७६, ७८, ७६, ७५, ६ और ८ प्रकृतिक सत्तास्थान होते हैं । " विशेषार्थ - इस गाथा में नामकर्म के सत्तास्थानों को बतलाते हुए उनमें गर्भित प्रकृतियों की संख्या बतलाई है कि प्रत्येक सत्तास्थान कितनी - कितनी प्रकृति का है। इससे यह तो ज्ञात हो जाता है कि नामकर्म के सत्तास्थान बारह हैं और वे ६३, ६२ आदि प्रकृतिक हैं, लेकिन यह स्पष्ट नहीं होता है कि प्रत्येक सत्तास्थान में ग्रहण की गई प्रकृतियों के नाम क्या हैं, अतः यहाँ प्रत्येक सप्तास्थान में ग्रहण की गई प्रकृतियों के नामोल्लेखपूर्वक उनकी सख्या को स्पष्ट करते हैं ।
पहला सत्तास्थान ६३ प्रकृतियों का बतलाया है। क्योंकि नामकर्म की सब उत्तर प्रकृतियां ६३ हैं, अतः ९३ प्रकृतिक सत्तास्थान में
* कमंप्रकृति और संघ सप्ततिका में नामकर्म के १०३, १०२, १६, ६५२३,६०,८६,८४,८३,२६और प्रकृतिक, ये १२ सलास्थान बतलाये हैं | यहाँ बताये गये और इनं १०३ आदि संख्या के सत्तास्थानों में इतना अंतर है कि ये स्थान बंधन के १५ भेव करके बतलाये ये हैं । ८२ प्रकृतिक जो सत्तास्थान बतलाया है वह दो प्रकार से बतलाया हैं । विशेष जानकारी वहाँ से कर लेना चाहिये ।
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२ नामकर्म की १३ उत्तर प्रकृतियों के नाम प्रथम कर्मग्रन्थ में दिये हैं । अक्षः पुनरावृत्ति के कारण यहाँ उनका उल्लेख नहीं किया है ।